Monday, December 22, 2008

रंग सत्ता का चढ़ा है...!

गाँव में सूखा पड़ा है चुप रहो
द्वार पर भूखा पड़ा है चुप रहो
चिढ़ गया माधो से थानेदार तो
जेल में वर्षों सड़ा है चुप रहो
भूख बेकारी से बस एक आदमी
आखिरी दम तक लड़ा है चुप रहो
क़त्ल करने वाला कोई और था
कोई फाँसी पर चढ़ा है चुप रहो
बोलता था सच सदा महफ़िल में जो
कब्र में सोया पड़ा है चुप रहो
पाँव धरती पर नहीं पड़ते हैं अब
रंग सत्ता का चढ़ा है चुप रहो
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कोटि-कोटि आँखों के आँसू...!

अहं-ग्रंथि जो काटे मन की
सच्चा नमन वही होता है,
जो करनी का बीज बन सके
सच्चा कथन वही होता है।
कोटि-कोटि आँखों के आँसू
जिनके दो नयनों में छलकें,
जिसका मन जग का दर्पण हो
सच्चा श्रमण वही होता है।।
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Sunday, December 21, 2008

अपराध उनका भारी है...!

मीठे सपनों को
जीते पलों के बीच
क्यों घुल जाती है
ये कडुवाहट अजीब-सी !
आख़िर क्या चाहते हैं वो लोग
जिन्हें परवाह नहीं
किसी की चाहत की,
आख़िर क्या हासिल होगा उन्हें
बेगुनाहों का हासिल छीनकर !
इतने तंग रास्ते से
ज़ंग जीतने की
कैसी जुगत है यह कि
नाहक आक्रमण जारी है
और जो ख़ामोश हैं
अपराध उनका भारी है !
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Friday, December 19, 2008

बीत रहा यह वर्ष...!

कैसे बीता कल,दो पल को
रूककर करें विचार।
आने वाले कल को चाहें
लेंगे सहज सँवार।।
दोष,क्लेश,विग्रह,विवाद के
दिन अब क्यों दोहराएँ ?
बीत रहा यह वर्ष, नए को
सब मिल गले लगाएँ।।
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Thursday, December 18, 2008

ग़र मूरत अपनी गढ़ना है...!

मत कोसो उन राहों को,

जिन पर कोसों तक चलना है।

मत रोको उन क़दमों को,

जिनसे मंज़िल तक बढ़ना है।।

किसने चलने में साथ दिया,

और कौन राह में छूट गया।

मत सोचो इन बातों पर,

ग़र मूरत अपनी गढ़ना है।।

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Wednesday, December 17, 2008

छोटी-छोटी बात लिखूंगा...!

छोटी कविता,छोटे किस्से,

छोटी-छोटी बात लिखूंगा।

दिन होगा तो दिन ही लिखूंगा,

ये न समझना रात लिखूंगा।।

लेकिन जब अनगिन लोगों ने,

कभी सुबह तक न देखी हो।

स्याह-स्याह उनकी रातों को,

कभी न दिन बेबात लिखूंगा।।

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Tuesday, December 16, 2008

इतना बोझ न रखना मन पर...!

इतना बोझ न रखना मन पर,

जीना ही दूभर हो जाए ।

ज़हर-ज़हर रह जाए अमृत,

पीना ही दूभर हो जाए ।।

चार अगर दे सकते हो तुम,

पाँच मांगती नहीं ज़िंदगी ।

इतनी मत तानों चादर फिर,

सीना ही दूभर हो जाए ।।

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Monday, December 15, 2008

दुःख भी दुखी हुआ करता है...!

दुःख पर लांछन नहीं लगाना

दुःख भी दुखी हुआ करता है !

कभी किसी को घाव न देना

जग भी दुआ किया करता है !!

सुख का जल कब ठहर सका है

सुख में भूल न जाना साथी !

कलाकार जीवन का उसको

पल भर छुआ किया करता है !!

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थोड़ी-सी कविता...!

थोड़ी सी कविता
और थोड़ा संगीत,
रचना जैसी ज़िंदगी से
हो थोड़ी-सी प्रीत.
अधिक माँग जीवन की
मैं कहता हूँ कतई नहीं है,
थोड़े से संतोष मिले
तो समझो जीवन रीत.
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Saturday, December 13, 2008

खोने और पाने का अन्तर...!

अपनी हर पहचान मिटाकर

जिस दिन अपने को पाओगे,

खोने और पाने का अन्तर

उस दिन सहज समझ जाओगे.

मत लकीर पानी पर खींचो

सच से मत तुम आँखें मींचो,

सब-कुछ से ना-कुछ बन देखो

जो कुछ हो वह रह जाओगे.

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Friday, December 12, 2008

बीत न जाए पल हाथों का...!

स्मृति में या आशाओं में
बीत न जाए पल हाथों का,
यह होता तो वह हो जाता
न हो शिकायत इन बातों का.
हर दिन उतना ही उजला है
जितना आँखों में प्रकाश है,
फ़िर क्यों पल-पल का रोना है
बीत गई काली रातों का ?
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Thursday, December 11, 2008

भीतर की दौलत वाले...!

फूल की तरह खिलने वाले

गंध बाँटकर भी जीते हैं

बंद ह्रदय वाले दुनिया में

देने का रस कब पीते हैं ?

बड़ा कठिन है बाहर के

कष्टों को सहकर स्थिर रहना

पर भीतर की दौलत वाले

न रोते, न ही रीते हैं.

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Tuesday, December 9, 2008

अपनी नज़रों में अपना क़द...!

मूल्य किसी का क्यों आँकें हम

अपना मूल्य बढ़ाकर देखें

अपनी नज़रों में अपना क़द

आओ जरा उठाकर देखें.

अपने ही कर्मों का नाता

एक दिन सत् से जुड़ जाएगा,

कहने और करने का अन्तर

आओ जरा मिटाकर देखें.

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Monday, December 8, 2008

अहा ! ज़िंदगी.

दुःख को सुख से भाग भले दो

दुःख से भाग नहीं पाओगे।

जितना सुख जग को बाँटोगे

उतना गुना सहज पाओगे।।

एक प्रतिध्वनि यह जीवन है

दिया हुआ वापस मिलता है।

सुख-दुःख में सम रह पाए तो

अहा! ज़िंदगी कह पाओगे !!

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Friday, December 5, 2008

बनेगी एक दिन बात...!

बनी रहे यदि तना-तनी

तब भी न बिगड़े बात,

इस तरह जिए जो सच मानों

वह जीवन है सौगात !

मुख मोड़ यहाँ जो गए भाग

उनका न रहा इतिहास,

डट कर जीने वाले कहते हैं

बनेगी एक दिन बात !

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थर-थर काँपेगी हर बाती...!

कुछ रह जाएँ,कुछ हट जाएँ

कितना फ़र्क पड़ेगा साथी ?

हटी न गर तंद्रा तो तय है

थर-थर काँपेगी हर बाती !

स्वार्थ-सुखों में लिप्त तंत्र का

अब भी यदि उपचार न हुआ

आज जो है आतंक रहेगा

कल वह बन जायेगा हाथी !

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Thursday, December 4, 2008

सँकरी सोच...चौड़ा सीना !

अपना सच अपनी दुनिया में

जीने वाले बहुत मिलेंगे

अपनी ही धुन का रस हर पल

पीने वाले बहुत मिलेंगे

लेकिल बिरले लोग यहाँ हैं

जो साखी बनकर जीते हैं

वरना सँकरी सोच के चौड़े

सीने वाले बहुत मिलेंगे

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Tuesday, December 2, 2008

जीने और जीने में फ़र्क बहुत है...!

आँखों के जालों की भाषा

पाँवों के छालों की भाषा,

देश के लिए सब कुछ देकर

मर-मिटने वालों की भाषा।

जिस दिन समझ सकेंगे

जीने और जीने फ़र्क बहुत है,

उस दिन दिल पर छा जायेगी

देश के दिल वालों की भाषा।।

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Monday, December 1, 2008

उन गीतों को आज जगाओ...!

ऐसे गीत बचा कर रखो

जो घावों को भर सकते हों,

उन गीतों को आज जगाओ

जो दुर्दिन से लड़ सकते हों !

और ज़रा तुम गीत चुनिंदा

ऐसे चुनो समय के साथी,

देश के दुश्मन की छाती पर

वक़्त पड़े जो चढ़ सकते हों !!

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