Thursday, October 22, 2009

अपनी एक कहानी है.

चलते-चलते पाँव थक गए बिना बिचारे बैठ गए
जो प्यासे थे घुटनों के बल नदी किनारे बैठ गए
अंधियारे के तालमेल की अपनी एक कहानी है
दिन वाले सूरज के घर में रात सितारे बैठ गए
बैठे हैं कुछ लोग इस तरह लोकतंत्र की छाया में
जैसे किसी पेड़ के नीचे कुछ बंजारे बैठ गए
चिड़िया सी ज़िंदगी उड़ानें भरती नहीं फिज़ाओं में
छिपकर किसी नींद पर कुछ सुकुमार सहारे बैठ गए
अमन चैन खुदकशी कर रहा है खेतों की मेड़ों पर
जब से गंवई पंचायत में कुछ हत्यारे बैठ गए
देशी ताल विदेशी बगुलों की चाहत में जीता है
मछली बिना शिकार-शिकारी कांटा मारे बैठ गए
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प्रभा दीक्षित,कानपुर की ग़ज़ल...देशबंधु से साभार

Monday, October 19, 2009

प्रतीक्षा....!

यात्रा में प्रतीक्षा आम बात है
लेकिन
दुनिया में ऐसे लोग भी तो हैं
जिनके हिस्से में
प्रतीक्षा ही यात्रा है
प्रतीक्षा....
चुटकी भर सुख,सुकून,इत्मीनान की !
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Sunday, October 18, 2009

प्रार्थना करें,याचना नहीं...!

भगवान से प्रार्थना कीजिए,याचना नहीं।
आपकी स्थिति ऐसी नहीं कि
कमजोरियों के कारण
किसी का मुँह ताकना पड़े
और याचना के लिए हाथ फैलाना पड़े
प्रार्थना कीजिए कि
मेरा प्रसुप्त आत्मबल जागृत हो
प्रकाश का दीपक जो विद्यमान है
वह टिमटिमाए नहीं
वरन रास्ता दिखाने की स्थिति में बना रहे
मेरा आत्मबल मुझे धोखा न दे
समग्रता में न्यूनता का भ्रम न होने दे
जब परीक्षा लेने और शक्ति निखारने हेतु
संकटों का झुंड आए
तब मेरी हिम्मत बनी रहे
और जूझने का उत्साह भी
लगता रहे कि ये बुरे दिन
अच्छे दिनों की सूचना देने आए हैं
प्रार्थना कीजिए कि हम हताश न हों
लड़ने की सामर्थ्य को
पत्थर पर घिसकर धार रखते रहें
योद्धा बनने की प्रार्थना करनी है
भिक्षुक बनने की नहीं
जब अपना भिक्षुक मन गिड़गिडाए
तो उसे दुत्कार देने की प्रार्थना भी
भगवान से करते रहें।
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अखंड ज्योति से साभार प्रस्तुत.

Monday, October 5, 2009

काम की हद तक हमारा काम है...!

कामयाबी के नहीं हम जिम्मेदार
काम की हद तक हमारा काम है
ज़ब्र उस मुख्तार पर क्यों कर करें
अर्ज़ कर देना हमारा काम है
हुस्ने सूरत को नहीं कहते हैं हुस्न
हुस्न तो हुस्ने अमल का नाम है
रह सके किस तरह अमजद मुतमईन
ज़िंदगी खौफ़े खुदा का नाम है
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अमजद हैदराबादी की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.