tag:blogger.com,1999:blog-8189373796808100228.post6525430421461937763..comments2023-11-03T08:55:39.369-07:00Comments on डॉ. चन्द्रकुमार जैन: ऐसे-वैसों को मुँह मत लगाया करो...!Dr. Chandra Kumar Jainhttp://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8189373796808100228.post-56861026948988582502009-09-17T12:57:07.656-07:002009-09-17T12:57:07.656-07:00वा भई वाह ! राहत इन्दोरी साहब की एक गज़ल है जिसका श...वा भई वाह ! राहत इन्दोरी साहब की एक गज़ल है जिसका शेर है ..उठाओ चाबुक तो झुक कर सलाम करते है वह कहीं से मिले तो यहाँ लगाओ -शरदशरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8189373796808100228.post-38889658838212814132009-09-17T01:38:52.809-07:002009-09-17T01:38:52.809-07:00उँगलियों से यूँ न सब उठाया करो
खर्च करने से पहले ...उँगलियों से यूँ न सब उठाया करो<br /><br />खर्च करने से पहले कमाया करो <br />सलाम जी बहुत सुंदर<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8189373796808100228.post-75147025798103928972009-09-16T22:49:40.353-07:002009-09-16T22:49:40.353-07:00खर्च करने से पहले कमाया करो
ज़िंदगी क्या है ख़ुद ...खर्च करने से पहले कमाया करो<br /><br />ज़िंदगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे<br /><br />बारिशों में पतंगें उड़ाया करो<br /><br />शुक्रिया! इन्दौरी जी और आपको भी...सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8189373796808100228.post-68418669307817328842009-09-16T21:39:05.372-07:002009-09-16T21:39:05.372-07:00"चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों क..."चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ <br />ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो"<br /><br />डॉ. चन्द्रकुमार जैन जी!<br />राहत इन्दौरी साहब की खूबसूरत गज़ल<br />पेश करने के लिए धन्यवाद!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8189373796808100228.post-34951120509385130142009-09-16T21:25:27.540-07:002009-09-16T21:25:27.540-07:00अपने सीने में दो गज ज़मीं बांधकर
आसमानों का ज़र्फ...अपने सीने में दो गज ज़मीं बांधकर<br /><br />आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो <br /><br />चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ <br /><br />ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो<br /><br />Wah ! bahut khoob.पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8189373796808100228.post-20726743786353262462009-09-16T21:23:01.653-07:002009-09-16T21:23:01.653-07:00चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों को मुँह ...चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ<br />ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो<br /><br />-नहीं लगाते, खुद ही आकर लग जाते हैं, क्या करें.<br /><br />-बेहतरीन रचना!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com