Sunday, August 31, 2008

जीवन उनका धन्य...!

जीवन उनका धन्य

कि जिनके उपवन का हर फूल खिला

धन्य मृत्यु वह जिसको

स्मृतियों का अनुपम हार मिला

कर्मवीर के आगे पथ का

हर पत्थर साधक बनता है

धन्य-धन्य वह मनुज

जिसे सत्कर्मों का उपहार मिला

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Saturday, August 30, 2008

सुना जाए सूनापन मन का...!

खिड़की बड़ी करो बेशक !

आकाश बड़ा कुछ अधिक दिखेगा

खान-पान-सम्मान मिले

विश्वास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा

लेकिन मन के सूनेपन को

सुनने का जब वक़्त नहीं है

कैसे मानूँ जीने का

एहसास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा !

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Friday, August 29, 2008

समय जिसे न बाँध सके...!

समय जिसे न बाँध सके

उस दिल का मित्रों क्या कहना !

जो काम किसी के आ जाए

उस दिन का मित्रों क्या कहना !

जो बीते कल को न रोए

आने वाले से मुक्त रहे

है आज-अभी मौजूद जो उस

पल-छिन का मित्रों क्या कहना !

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Thursday, August 28, 2008

रिश्ता दिल का...दिल से !

ख़ुशी जो मिल गई

तो ग़म का साथ छूट जाता है

अगर ग़म छा गया

खुशियों पे कहर टूट जाता है

दिलों को जोड़ने वाली

अनोखी डोर है मित्रों !

अगर वह न जुड़ी

तो दिल का रिश्ता रूठ जाता है

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Wednesday, August 27, 2008

नाज़ुक-सी नादानी...!

चाँद से सितारों की

कौन सी हरकत अनजानी है

सागर से क्या छुपा है

कि बूँद में कितना पानी है ?

ज़मीन भूलकर तू आसमां में

उड़ न भोले मन

पंछी की तरह ये तेरी

एक नाज़ुक-सी नादानी है

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Tuesday, August 26, 2008

वक़्त स्वयं भुगतान करेगा !

अच्छा है मिल जाए गगन पर

मत धरती को भूलो प्यारे

भली बड़ी है ऊँचाई पर

मत घमंड में झूलो प्यारे

ऊँचाई से गहराई का

रिश्ता याद सदा तुम रखना

वक़्त स्वयं भुगतान करेगा

मत बेवक़्त वसूलो प्यारे
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Monday, August 25, 2008

हर पल जिएँ यह ज़िंदगी.

एक पल के बाद
दूसरा पल क्या है ?
हँसने के बाद रोना पड़े
तो आश्चर्य क्या है ?
कली जो खिल रही
चंपा,चमेली बेल में
दूसरे पल टूटकर गिर जाए
तो आश्चर्य क्या है ?
एक पल पहले जिसे
देखा यहाँ हँसते हुए
दूसरे पल रुदन में ढल जाए
तो आश्चर्य क्या है ?
बेहतर है हम सभी
हर पल जिएँ ये ज़िंदगी
पल भर में ये
हाथों से निकल जाए
तो आश्चर्य क्या है ?
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Sunday, August 24, 2008

इंसान कौन...?


लहर जो बहके

वही तूफान है

जो मिले बिन चाह

वह वरदान है

राह पर तो पाँव

चलते हैं सभी

जो बना ले राह

वह इंसान है
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Friday, August 22, 2008

मुमकिन है....!


गगन के मुक्त ख़्वाबों का

धरा से प्यार मुमकिन है

न दुनिया हो मुक़म्मल पर

यहाँ घर-बार मुमकिन है

कि जब तक आँख में पानी

हृदय में आग जीवित है

अंधेरे में उजाले का

खुले दरबार मुमकिन है

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Thursday, August 21, 2008

ज़ख्म बने सौगात....!

गुज़रता है वक़्त

बदल जाते हैं हालात

बीते दिनों की दिलों में

रह जाती है बस याद

उठती है टीस

चोट जो लग जाए राह में

मिल जाए प्यार

ज़ख्म भी बन जाते हैं सौगात
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Wednesday, August 20, 2008

जाने कितने मीत होंगे...!

तुम जलो तो साथ रोशन
जाने कितने दीप होंगे
तुम चलो तो हमक़दम बन
जाने कितने मीत होंगे
आदमी को आदमी की
नज़र से बस देखना
जो मिलेंगे सच कहूँ मैं
वो बड़े विनीत होंगे
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Tuesday, August 19, 2008

भार....बेकार !

मेरे गाँव का राजकुमार
प्रतिभाशाली और होनहार
ज़वानी की दहलीज़ पर
क़दम रखते ही
बूढ़े माँ-बाप पर
भार हो गया है
बी.ए.क्या कर लिया
बेकार हो गया है
उस पर न किसी का भरोसा
न उसे किसी पर विश्वास है
अगर कुछ है तो बस उसे
अपनी ज़मीन की तलाश है.
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Monday, August 18, 2008

मुलाक़ात की एक आस ऐसी भी...!

मुझे उनसे मिलना है
जो यह जानते हैं
कि वे कुछ नहीं जानते
मुझे उनसे मत मिलाना
जो स्वयं को सर्वज्ञ मानते हैं !
मुझे मिलना है उनसे
जो जलाकर अपना घर करते हैं
रौशन दुनिया औरों की
मुझे उनसे मत मिलाना
जो दूसरों के अंधेरे में सेंकते हैं
रोटी अपने उजाले की !
मुझे उनसे मिलना है
जो अपने घरों का कचरा
दूसरों पर नहीं फेंकते
उनसे मत मिलाना
जो दूसरों का आँचल देख
ख़ुद को बेदाग़ समझते हैं !
मुझे उनसे मिलना है
जो कुछ कहना और
कुछ करना भी जानते हों
मुझे उनसे मत मिलाना
जो सिर्फ़ कुछ दिखने को
सब कुछ मानते हों !
तो मुझे मिलना है उनसे
जो कभी ख़ुद से भी मिल चुके हों
मुझे उनसे मत मिलाना
जो अपनी ही हस्ती से फिसल चुके हों !
और मुझे मिलना है उनसे
जो जीने के लिए साँसों का साथ देते हैं
मुझे उनसे मत मिलाना
जो सिर्फ़ साँसों को जीना समझते हों !
और मुझे उनसे मिलना है
जो चाहे बैसाखी के सहारे चलते हों
पर मुझे उनसे कभी मत मिलाना
जो सहारों को ही बैसाखी मान बैठे हों !
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Saturday, August 16, 2008

मैंने सलाम भेजा,तुम राम-राम लिखना.

एक नई सुबह लिखना एक नई शाम लिखना
अंदाज़ नया जीने का मेरे नाम लिखना
कोई नहीं किसी का हर शख्स यहाँ तन्हा
हो बात हमसफ़र की तो मेरा नाम लिखना
मैं जिसको गुनगुनाऊँ तो रूह तेरी महके
लिखना तो कोई नगमा दिल शादकाम लिखना
जो लोग आदमी को पैसों से तोलते हैं
बिक जायेंगे वो इक दिन कौड़ी के दाम लिखना
मज़हब के नाम पे है जो फ़र्क वो मिटा दें
मैंने सलाम भेजा तुम राम-राम लिखना
अहसास मोहब्बत का हो 'चन्द्र' तो बस ऐसा
दुश्मन के ज़ाम में भी अमृत का नाम लिखना
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Friday, August 15, 2008

सवाल विकास का है...!

सवाल जलने का नहीं

प्रकाश का है

सवाल कहने का नहीं

विश्वास का है

काँटों से भरे बीहड़ पथ पर

सवाल चलने का नहीं

विकास का है
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Thursday, August 14, 2008

आज़ादी ; सिर्फ़ शब्द नहीं...!

शब्दों के सार-शून्य व्यामोह से
मुक्त होकर ही
खुल सकता है अर्थ आज़ादी का !
आज़ादी से इंसान का रिश्ता
वैसा ही है,जैसा रूप का श्रृंगार से
नदी का पाट से, सरोवर का घाट से
फूल का सुवास से, प्रेम का विश्वास से
आजादी शब्द नहीं,बोध है
ज़िंदगी के माने की तलाश है, शोध है
आज़ाद होने पर कोई नहीं दिखता गुलाम
कोई डर नहीं होता
जहाँ आज़ादी है वहाँ कोई दिल नहीं रोता
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Wednesday, August 13, 2008

एक आँसू का मोल....!

किसी की चार दिन की ज़िंदगी में
सौ काम होते हैं
किसी का सौ बरस का जीना भी
बेकार होता है
किसी के एक आँसू पर हजारों
दिल तड़पते हैं
किसी का उम्र भर का रोना भी
बेकार होता है
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Tuesday, August 12, 2008

हर क़दम आलोक....

उठो साथी हर क़दम

आलोक करना है

तड़पती हर ज़िंदगी का

शोक हरना है

व्यक्तिगत सुख का हमें

बलिदान करके भी

शांति से हर एक घर का

चौक भरना है

उठो साथी......!

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Monday, August 11, 2008

तन्हाई से नहीं डरेंगे...!

अपनी हस्ती जीने वाले

तन्हाई से नहीं डरेंगे

शब्द-शिल्प-संगीत रचेंगे

रुसवाई से नहीं डरेंगे

बच जाए जो सब कुछ खोकर

मोल न उसका जाने दुनिया

हक रचने का अदा करेंगे

भरपाई से नहीं डरेंगे
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Sunday, August 10, 2008

भरी बरसात में...!

भरी बरसात में जो कट गए
वो पेड़ रोते हैं
तरक्की के बहाने यूँ
ज़हर क्यों लोग बोते हैं
जो अपनी साँस का सौदा
चमन बर्बाद कर करते
ये तय मानो कि एक दिन
वो ख़ुशी से हाथ धोते हैं
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Saturday, August 9, 2008

ज़मीं बच गई...!

जिनके पाँवों के नीचे
ज़मीं बच गई
ज़िंदगी,ज़िंदगी में
उन्हें रच गई
गगन के ख़यालों में
क्यों कर रहें
जब धरा की महक
रूह में बस गई
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Friday, August 8, 2008

हो उसको प्राण समर्पित...!

हर फूल नहीं मुस्काता

हर कली नहीं खिलती है

माना जीना है बरसों

फिर भी तो चला-चली है

हो उसको प्राण समर्पित

जो सुख-दुःख में सम रहता

जिसकी पदचाप निराली

इस दिल ने सदा सुनी है

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Thursday, August 7, 2008

तुलसी जयंती.

जगत् को मर्म जीने का

सिखाया राम में जीना

अडिग रहना सिखाया और

बताया भक्ति-रस पीना

वचन की आन रखने और

स्वयं को जीतने की धुन

न तुम होते बताता कौन

जीवन-गान में जीना
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Wednesday, August 6, 2008

जीवन सहज-सरल है...!

जीवन सहज-सरल है इसको
खेल-खेल में जी लेता हूँ
रीत न जाए व्यर्थ छलक कर
अमृत है यह, पी लेता हूँ
कैसा बोझ,विवशता कैसी
सब अपना है ताना-बाना
अपनी बुनी चदरिया है यह
बिखर गई तो सी लेता हूँ
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Tuesday, August 5, 2008

हँसी न हो पराई....!

मिलन के पूर्व ही
देखी विदाई ज़िंदगी में
अगर पर्वत है तो
बेशक है खाई ज़िंदगी में
मगर इंसान का हक
तब अदा होता है मित्रों
रुदन में भी हँसी
न हो पराई ज़िंदगी में
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Monday, August 4, 2008

सावन की झड़ी है...!

द्वार सुख के बंद कर

दीवार जो करते खड़ी हैं

कैसे हैं ये लोग जिनको

सिर्फ़ अपनी ही पड़ी है

'आज' का सह ताप 'कल'

शीतल हुआ करता है जग में

क्या वो जाने क्यों लगी

सब ओर सावन की झड़ी है
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Sunday, August 3, 2008

जीवन लक्ष्य मिला...!

आँखों के खारे पानी से

किसका जग में काम चला

वज्र ह्रदय मानव ही देते हैं

संकट की शान गला

निर्बलता,कायरता सारे

दोषों की जननी होती

निर्भय होकर चलने वालों

को ही जीवन-लक्ष्य मिला
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Saturday, August 2, 2008

ज़िंदगी कितनी हंसीं है...!

सोचता हूँ मैं कि
मेरी ज़िंदगी कितनी हंसीं है
आसमां अपना-सा है
अपनी ही सारी ये ज़मीं है
क्यूँ शिकायत हो किसी से
फ़ासले क्यूँ-कर रखूँ मैं
दर्द अपना पर ज़हां की
आँखों में देखी नमी है
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Friday, August 1, 2008

वह सावन ही क्या...!


वह सावन ही क्या

बहती जिसमें रस धार नहीं

वह पावन ही क्या

जिसके मन में जग-प्यार नहीं

समझी ही नहीं पीड़ा

जिसने व्याकुल मन की

वह जीवन ही क्या

जिसका कोई आधार नहीं

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