कटे हुए जीने से बोलो जग में जुड़ना कैसे होगा ?
कटे हुए हों पंख अगर तो नभ में उड़ना कैसे होगा ?
दूरी से दुनियादारी में डट कर जीना नामुमकिन है,
कटे हुए सबसे मिलने के पथ पर मुड़ना कैसे होगा ?
Monday, March 31, 2008
Sunday, March 30, 2008
चलने की भाषा .
डूबता नहीं सूरज साँझ होने पर
बस लौट जाता है घर अपने
हर यात्रा का आख़िरी पड़ाव
अपना घर ही तो होता है न ?
जो अपने घर की यात्रा पर है
वह चलता है,जलता है,तपता है
और दे जाता है दुनिया को
चलने,जलने और तपने की सीख
सूरज कभी सोता नहीं
सोती हैं रातें
जिन्हें जगाता है सूरज
कि फिर हो नई सुबह
उभरे प्राची पर नव-आभा
और समझ सके सारा संसार
चलकर रुकने और रूककर चलने की भाषा !
बस लौट जाता है घर अपने
हर यात्रा का आख़िरी पड़ाव
अपना घर ही तो होता है न ?
जो अपने घर की यात्रा पर है
वह चलता है,जलता है,तपता है
और दे जाता है दुनिया को
चलने,जलने और तपने की सीख
सूरज कभी सोता नहीं
सोती हैं रातें
जिन्हें जगाता है सूरज
कि फिर हो नई सुबह
उभरे प्राची पर नव-आभा
और समझ सके सारा संसार
चलकर रुकने और रूककर चलने की भाषा !
Saturday, March 29, 2008
रोने की बातें मत करना !
जब तक रात न ढल जाए सोने की बातें मत करना
फूल हँसी के खिलने तक रोने की बातें मत करना
माना बात रहेगी सब कुछ खो जाने के बाद मगर
धीरज मंजिल मिलने तक खोने की बातें मत करना
फूल हँसी के खिलने तक रोने की बातें मत करना
माना बात रहेगी सब कुछ खो जाने के बाद मगर
धीरज मंजिल मिलने तक खोने की बातें मत करना
Thursday, March 27, 2008
बिटिया मेरी !
न जाने कहाँ खो गयी
बिटिया मेरी
तीन साल की उम्र से.
वो मेरी आँखों का नूर
चली गयी है मुझसे कितनी दूर
कोई पता हो तो बता दें
इंसानियत का क़र्ज़ चुका दें
वो मेरे घर की
सबसे प्यारी शहजादी है
मेरा नाम भारत
और उसका नाम आजादी है.
बिटिया मेरी
तीन साल की उम्र से.
वो मेरी आँखों का नूर
चली गयी है मुझसे कितनी दूर
कोई पता हो तो बता दें
इंसानियत का क़र्ज़ चुका दें
वो मेरे घर की
सबसे प्यारी शहजादी है
मेरा नाम भारत
और उसका नाम आजादी है.
Monday, March 24, 2008
मेरी पसंद
ह्रदय अगर छोटा हो
तो शोक उसमें नहीं समाएगा
और दर्द दस्तक दिए बिना
लौट जाएगा .
टीस उसे उठती है
जिसका भाग्य खुलता है
वेदना गोद में उठाकर
सबको निहाल नहीं करती
जिसका पुण्य प्रबल होता है
वही अपने आंसुओं से धुलता है !
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- दिनकर जी
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तो शोक उसमें नहीं समाएगा
और दर्द दस्तक दिए बिना
लौट जाएगा .
टीस उसे उठती है
जिसका भाग्य खुलता है
वेदना गोद में उठाकर
सबको निहाल नहीं करती
जिसका पुण्य प्रबल होता है
वही अपने आंसुओं से धुलता है !
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- दिनकर जी
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Sunday, March 23, 2008
मेरी पसंद
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पर एक नशा होता है ----अन्धकार के गरजते महासागर की
चुनौती को स्वीकार करने,पर्वताकार लहरों से खाली हाथ
जूझने का, अनमापी गहराइयों में लगातार उतरते जाने का
और फिर अपने को सारे खतरों में डालकर आस्था के,
प्रकाश के, सत्य के,मर्यादा के कुछ कण बटोरकर,बचा कर,
धरातल तक ले आने का ---इस नशे में इतनी गहरी वेदना
और इतना तीखा सुख घुला -मिला रहता है कि
उसके आस्वादन के लिए मन बेबस हो उठता है।
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अँधा युग में डा.धर्मवीर भारती
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पर एक नशा होता है ----अन्धकार के गरजते महासागर की
चुनौती को स्वीकार करने,पर्वताकार लहरों से खाली हाथ
जूझने का, अनमापी गहराइयों में लगातार उतरते जाने का
और फिर अपने को सारे खतरों में डालकर आस्था के,
प्रकाश के, सत्य के,मर्यादा के कुछ कण बटोरकर,बचा कर,
धरातल तक ले आने का ---इस नशे में इतनी गहरी वेदना
और इतना तीखा सुख घुला -मिला रहता है कि
उसके आस्वादन के लिए मन बेबस हो उठता है।
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अँधा युग में डा.धर्मवीर भारती
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Saturday, March 22, 2008
Thursday, March 20, 2008
आशा के उजले रंग ...
आशा के उजले रंग
प्रेम के जल में घोल कर
भेजें उन्हें बुलावा
होली खेलने का
जिनके खामोश दिन -रात
अब तक व्यथा की आग में
घोलते रहे हैं सिर्फ़ आंसुओं के रंग !
कि फूलों पर कभी नहीं उभरते
जिनके पाँवों के निशान
लेकिन जरूर मिलेंगे
शूलों पर छूटे रक्त के रंग !
कि घुटनों पर सिर रखी जिनकी उदासी को
कभी न मिल सका हँसी का कुमकुम !
पुकारें उन्हें, कि एक बार तो पा सकें वे
इसी धरती पर जन्म लेने का फल
और हमें भी मिल जाए होली पर
सचमुच किसी के हो लेने के कुछ पल !
प्रेम के जल में घोल कर
भेजें उन्हें बुलावा
होली खेलने का
जिनके खामोश दिन -रात
अब तक व्यथा की आग में
घोलते रहे हैं सिर्फ़ आंसुओं के रंग !
कि फूलों पर कभी नहीं उभरते
जिनके पाँवों के निशान
लेकिन जरूर मिलेंगे
शूलों पर छूटे रक्त के रंग !
कि घुटनों पर सिर रखी जिनकी उदासी को
कभी न मिल सका हँसी का कुमकुम !
पुकारें उन्हें, कि एक बार तो पा सकें वे
इसी धरती पर जन्म लेने का फल
और हमें भी मिल जाए होली पर
सचमुच किसी के हो लेने के कुछ पल !
Wednesday, March 19, 2008
दिल से मनाओ होली ...........
कोरा दंभ
जीवन निरालम्ब
अंध -स्पर्धा
शर्म बेपर्दा
बेबूझ अज्ञान
सहयात्री से अंजान
भ्रांत -अवधारणा
एकाकी विचारना
पाँवों का भटकाव
जिन्दगी का ठहराव
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इन सब की जलाओ होली
फिर दिल से मनाओ होली !
जीवन निरालम्ब
अंध -स्पर्धा
शर्म बेपर्दा
बेबूझ अज्ञान
सहयात्री से अंजान
भ्रांत -अवधारणा
एकाकी विचारना
पाँवों का भटकाव
जिन्दगी का ठहराव
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इन सब की जलाओ होली
फिर दिल से मनाओ होली !
दो होलियाना टुकड़े !
ट्रक वालों से बचकर चलना
वरना वो तुम्हें कुचल देंगे
बाई द वे बच गए तो
पीछे लिखा ही होगा -
फिर मिलेंगे !!!
उन्होंने
होली पर
दुश्मन को
इस तरह मनाया
पहले मुंह पर
पोती कालिख
फिर गुलाल लगाया !!!
वरना वो तुम्हें कुचल देंगे
बाई द वे बच गए तो
पीछे लिखा ही होगा -
फिर मिलेंगे !!!
उन्होंने
होली पर
दुश्मन को
इस तरह मनाया
पहले मुंह पर
पोती कालिख
फिर गुलाल लगाया !!!
Monday, March 17, 2008
कोई बताये !
अमावस किस माह में नहीं आती
थकावट किस राह में नहीं आती
दुनिया में मुझे कोई बताये तो सही
रूकावट किस चाह में नहीं आती
थकावट किस राह में नहीं आती
दुनिया में मुझे कोई बताये तो सही
रूकावट किस चाह में नहीं आती
सफ़ेद पर,सफ़ेद से,सफ़ेद लिख दो !
बहुत संभावनापूर्ण है
न लिख पाने की भीत !
फिर भी कोरे काग़ज़ की मासूमियत पर
कुछ मासूम से लफ़्ज लिखकर तो देखिए ।
गर काग़ज़ की मासूमियत याद है
तो लिखी गई मासूम इबारत कैसे भूलेगी ?
वह तो यादों की धरोहर बन
सपनो का झूला झूलेगी ।
सफेद पर, सफेद से, सफेद लिखा
लिख भी जाता है और
वह अनलिखा दिख भी जाता है !
और जो दिखता है
उसे याद रखने की चिंता नहीं सताती
वह कोरा कागज बन जाता है एक थाती !
न लिख पाने की भीत !
फिर भी कोरे काग़ज़ की मासूमियत पर
कुछ मासूम से लफ़्ज लिखकर तो देखिए ।
गर काग़ज़ की मासूमियत याद है
तो लिखी गई मासूम इबारत कैसे भूलेगी ?
वह तो यादों की धरोहर बन
सपनो का झूला झूलेगी ।
सफेद पर, सफेद से, सफेद लिखा
लिख भी जाता है और
वह अनलिखा दिख भी जाता है !
और जो दिखता है
उसे याद रखने की चिंता नहीं सताती
वह कोरा कागज बन जाता है एक थाती !
तो कोई बात बने
खौफ की धुंध मिटाओ तो कोई बात बने
प्यार का गीत सुनाओ तो कोई बात बने
कोई हसरत न रहे बाकी हमारे दिल में
इस तरह सामने आओ तो कोई बात बने
साफगोई में जहर होता है माना लेकिन
चाशनी उसमें मिलाओ तो कोई बात बने
शख्सियत जिसकी नहीं और जो नाकाबिल है
उसको इंसान बनाओ तो कोई बात बने
अमन के नाम पर गुमराह जो करते हैं हमें
उनकी बातों में न आओ तो कोई बात बने
प्यार का गीत सुनाओ तो कोई बात बने
कोई हसरत न रहे बाकी हमारे दिल में
इस तरह सामने आओ तो कोई बात बने
साफगोई में जहर होता है माना लेकिन
चाशनी उसमें मिलाओ तो कोई बात बने
शख्सियत जिसकी नहीं और जो नाकाबिल है
उसको इंसान बनाओ तो कोई बात बने
अमन के नाम पर गुमराह जो करते हैं हमें
उनकी बातों में न आओ तो कोई बात बने
आदमी के मन में
Sunday, March 16, 2008
रंगों ने श्रृंगार किया है.
मधु -मादक रंगों ने देखो जीवन का श्रृंगार किया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है ।
वासंती उल्लास को केवल
फागुन का अनुराग न समझो
ढोलक की तुम थाप को केवल
फाग -राग ,पदचाप न समझो
जो भीतर से खुला उसी ने जीवन का मनुहार किया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है ।
पतझर में देखो झरना तुम
फिर वसंत का आना देखो
पीड़ा में क्रीड़ा जीवन की
आंसू में मुस्काना देखो
सुख -दुःख में यदि भेद नहीं है समझो जीवन पूर्ण जिया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है .
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है ।
वासंती उल्लास को केवल
फागुन का अनुराग न समझो
ढोलक की तुम थाप को केवल
फाग -राग ,पदचाप न समझो
जो भीतर से खुला उसी ने जीवन का मनुहार किया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है ।
पतझर में देखो झरना तुम
फिर वसंत का आना देखो
पीड़ा में क्रीड़ा जीवन की
आंसू में मुस्काना देखो
सुख -दुःख में यदि भेद नहीं है समझो जीवन पूर्ण जिया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है .
Saturday, March 15, 2008
मुसकान का मोल है
दुर्दिन में दान का मोल है
क्षुधा में जलपान का मोल है
रेगिस्तान में बारिश की तरह
दर्द में मुसकान का मोल है
क्षुधा में जलपान का मोल है
रेगिस्तान में बारिश की तरह
दर्द में मुसकान का मोल है
Friday, March 14, 2008
जितना दर्द मुझे तुम दोगे ...
जितना दर्द मुझे तुम दोगे मैं उतने ही गीत लिखूंगा
शोर मचाओ तुम कितना भी पर मैं तो संगीत रचूंगा
सीख लिया है मैंने जीना पथ की अनगिन बाधाओं से
रोको चाहे मुझे कहीं भी मैं मंजिल पर जीत लिखूंगा
शोर मचाओ तुम कितना भी पर मैं तो संगीत रचूंगा
सीख लिया है मैंने जीना पथ की अनगिन बाधाओं से
रोको चाहे मुझे कहीं भी मैं मंजिल पर जीत लिखूंगा
Thursday, March 13, 2008
मन के मीत क्यों न मिलेंगे ?
कुछ तरंगें उठीं मन में और मन के मीत जीतने की कुछ रीत सूझ गयी ।
सोचा आपसे साझा कर लूँ ।
तो ये हैं चंद सुझाव जिन्हें आज के दौर में टिप्स कहने का चलन है ।
एक ---- दूसरों को अपने विषय में बोलने दें ।
दो ----- दूसरों की रूचि की बात करें
तीन ----- दूसरों के महत्व को कम मत आँकें ।
चार ----- बहस से बचें , समझ और सुझाव का मार्ग अपनाएं ।
पाँच----- कभी किसी को मुंह पर ग़लत न कहें ।
छः ------ दूसरों के सामने स्वयं की आलोचना की हिम्मत रखें ।
सात ----- कभी अपने मित्र को यह एहसास करायें कि कुछ मामलों में वह आपसे भी आगे निकल गया है ।
आठ ------ अपने मित्र को उसकी जगह पर स्वयं को रखकर समझने की कोशिश करें ।
नव -------- दूसरों की खासियत खोजें ।
दस -------- अपनी कमजोरियों से जी न चुराएं ।
सोचा आपसे साझा कर लूँ ।
तो ये हैं चंद सुझाव जिन्हें आज के दौर में टिप्स कहने का चलन है ।
एक ---- दूसरों को अपने विषय में बोलने दें ।
दो ----- दूसरों की रूचि की बात करें
तीन ----- दूसरों के महत्व को कम मत आँकें ।
चार ----- बहस से बचें , समझ और सुझाव का मार्ग अपनाएं ।
पाँच----- कभी किसी को मुंह पर ग़लत न कहें ।
छः ------ दूसरों के सामने स्वयं की आलोचना की हिम्मत रखें ।
सात ----- कभी अपने मित्र को यह एहसास करायें कि कुछ मामलों में वह आपसे भी आगे निकल गया है ।
आठ ------ अपने मित्र को उसकी जगह पर स्वयं को रखकर समझने की कोशिश करें ।
नव -------- दूसरों की खासियत खोजें ।
दस -------- अपनी कमजोरियों से जी न चुराएं ।
Wednesday, March 12, 2008
चांदनी चिंतन की.
बात १९७० की है ।
दुनिया के जाने -माने एथलीटों ने फ़ैसला किया कि
अपना प्रदर्शन दुरुस्त करने की कोई नई पहल की जाये ।
सबने तय किया कि खेल शुरू होने से पहले वे अपनी जीत की काल्पनिक खुशी मनायेंगे ।
स्वयं को जीतते हुए देखेंगे । अमूर्त को मूर्त रूप में देखने की यह कोशिश बड़ी कारगर रही ।
खिलाड़ियों की जीत के अवसर बढ़ गए ।
मुझे लगता है हार या जीत से बड़ी बात है जीतने का ज़ज्बा बनाये रखना ।
इसे मैं सफलता की भीतरी यात्रा के रूप में देखता हूँ ।
आप ख़ुद को अप्प्रूव करेंगे तो दुनिया वालों के सामने
कुछ प्रूव करने की जरूरत नहीं रह जायेगी ।
अपने भीतर इस एहसास को जिंदा रखना कि आप
शिद्दत से जीने और जीतने को अभिन्न मानते हैं ,सचमुच बड़ी बात है ।
हार को जीत में ; रुदन को गीत में बदलने की कला बड़ी बात है ।
जो चलता है वही ठाकरें भी खाता है ,कभी गिर भी जाता है।
लेकिन गिरने में भी उठने का राज़ छुपा है ।
देखिये न कलम से स्याही गिरी कि कागज़ पर सुंदर अक्षर उठ जाते हैं ।
बादल से गिरता है पानी और धरती पर पौधे उग आते हैं ।
मानस मर्मज्ञ डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्रा की पंक्तियाँ हैं ...
वह देख तुम्हारा तेज स्वयं साधक होगा ।
तुम अपने पथ के बस आराधक हो लो ,
पथ स्वयं तुम्हारे पथ का आराधक होगा ।
दुनिया के जाने -माने एथलीटों ने फ़ैसला किया कि
अपना प्रदर्शन दुरुस्त करने की कोई नई पहल की जाये ।
सबने तय किया कि खेल शुरू होने से पहले वे अपनी जीत की काल्पनिक खुशी मनायेंगे ।
स्वयं को जीतते हुए देखेंगे । अमूर्त को मूर्त रूप में देखने की यह कोशिश बड़ी कारगर रही ।
खिलाड़ियों की जीत के अवसर बढ़ गए ।
मुझे लगता है हार या जीत से बड़ी बात है जीतने का ज़ज्बा बनाये रखना ।
इसे मैं सफलता की भीतरी यात्रा के रूप में देखता हूँ ।
आप ख़ुद को अप्प्रूव करेंगे तो दुनिया वालों के सामने
कुछ प्रूव करने की जरूरत नहीं रह जायेगी ।
अपने भीतर इस एहसास को जिंदा रखना कि आप
शिद्दत से जीने और जीतने को अभिन्न मानते हैं ,सचमुच बड़ी बात है ।
हार को जीत में ; रुदन को गीत में बदलने की कला बड़ी बात है ।
जो चलता है वही ठाकरें भी खाता है ,कभी गिर भी जाता है।
लेकिन गिरने में भी उठने का राज़ छुपा है ।
देखिये न कलम से स्याही गिरी कि कागज़ पर सुंदर अक्षर उठ जाते हैं ।
बादल से गिरता है पानी और धरती पर पौधे उग आते हैं ।
मानस मर्मज्ञ डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्रा की पंक्तियाँ हैं ...
निश्चय समझो जो कभी तुम्हारा बाधक था ,
वह देख तुम्हारा तेज स्वयं साधक होगा ।
तुम अपने पथ के बस आराधक हो लो ,
पथ स्वयं तुम्हारे पथ का आराधक होगा ।
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