बड़ी-बड़ी बातों से
नहीं बचेगी धरती
वह बचेगी
छोटी-छोटी कोशिशों से
हम
नहीं फेकें कचरा
इधर-उधर
स्वच्छ रहेगी धरती
हम
नहीं खोदें गड्ढा
स्वस्थ रहेगी धरती
हम
नहीं होने दें उत्सर्जित
विषैली गैसें
प्रदूषण मुक्त रहेगी धरती
हम
नहीं काटें जंगल
पानीदार रहेगी धरती
धरती को पानीदार बनाएँ
आइए! धरती बचाएँ।
=======================
विश्व पृथ्वी दिवस पर...
अजहर हाशमी की रचना
'नई दुनिया' से साभार प्रस्तुत.
Wednesday, April 21, 2010
Saturday, April 17, 2010
है जान वहीं अफ़साने में...!
हम पृथ्वी के नमक नहीं....!
Wednesday, April 14, 2010
बस एक काम यही.....!
बस एक काम यही बार-बार करता था
भंवर के बीच से दरिया को पार करता था
उसी की पीठ पर उभरे निशान ज़ख्मों के
जो हर लड़ाई में पीछे से वार करता था
अजीब शख्स था ख़ुद अलविदा कहा, लेकिन
हरेक शाम मेरा इंतज़ार करता था
हवा ने छीन लिया अब जो धूप का जादू
नहीं तो पेड़ भी पत्तों से प्यार करता था
सुना है वक़्त ने उसको बना दिया पत्थर
जो रोज़ वक़्त को भी संगसार करता था
==============================
माधव कौशिक की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.
भंवर के बीच से दरिया को पार करता था
उसी की पीठ पर उभरे निशान ज़ख्मों के
जो हर लड़ाई में पीछे से वार करता था
अजीब शख्स था ख़ुद अलविदा कहा, लेकिन
हरेक शाम मेरा इंतज़ार करता था
हवा ने छीन लिया अब जो धूप का जादू
नहीं तो पेड़ भी पत्तों से प्यार करता था
सुना है वक़्त ने उसको बना दिया पत्थर
जो रोज़ वक़्त को भी संगसार करता था
==============================
माधव कौशिक की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.
Sunday, April 11, 2010
प्रतिज्ञा हूँ मैं.....!
Thursday, April 8, 2010
रंग......बकलम इमरोज़
Wednesday, April 7, 2010
मेरी पसंद....इमरोज़
जीने लगो तो करना
फूल
ज़िन्दगी के हवाले।
जाने लगो तो करना
बीज
धरती के हवाले।
==================
साभार प्रस्तुत...
फूल
ज़िन्दगी के हवाले।
जाने लगो तो करना
बीज
धरती के हवाले।
==================
साभार प्रस्तुत...
Monday, April 5, 2010
समय और समझ...!
Saturday, April 3, 2010
बहती रहे नदी.....!
पेड़ों को
सींचते रहना
पानी से
ताकि बची रहे
हरियाली
धरती की।
चिड़ियों को
डालते रहना दाना
ताकि बचा रहे
संगीत
हवाओं में।
ह्रदय में
उगने देना
छंद करुणा के
ताकि बची रहे
नमी
तुम्हारी आँखों की।
शिशुओं को
सुनाते रहना लोरी
ताकि बचे रहें
ख़्वाब आँखों के पन्नों पर।
भूखे को
खिलाते रहना रोटी
ताकि बना रहे
सामंजस्य
भूख और रोटी के बीच।
प्यासों को
पिलाते रहना पानी
ताकि बहती रहे
नदी
तुम्हारे भीतर की।
और तभी तो
बची रहेगी कविता
सबके जीवन में।
=============================
डॉ.पुष्पारानी गर्ग की रचना साभार प्रस्तुत.
सींचते रहना
पानी से
ताकि बची रहे
हरियाली
धरती की।
चिड़ियों को
डालते रहना दाना
ताकि बचा रहे
संगीत
हवाओं में।
ह्रदय में
उगने देना
छंद करुणा के
ताकि बची रहे
नमी
तुम्हारी आँखों की।
शिशुओं को
सुनाते रहना लोरी
ताकि बचे रहें
ख़्वाब आँखों के पन्नों पर।
भूखे को
खिलाते रहना रोटी
ताकि बना रहे
सामंजस्य
भूख और रोटी के बीच।
प्यासों को
पिलाते रहना पानी
ताकि बहती रहे
नदी
तुम्हारे भीतर की।
और तभी तो
बची रहेगी कविता
सबके जीवन में।
=============================
डॉ.पुष्पारानी गर्ग की रचना साभार प्रस्तुत.
Subscribe to:
Posts (Atom)