आचार्य विद्यासागर जी का
कालजयी 'मूकमाटी' महाकाव्य
संघर्ष को हर्ष में बदलने वाला
सकारात्मक दस्तावेज - डॉ. चन्द्रकुमार जैन
राजनांदगांव। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के मूकमाटी महाकाव्य पर बहुप्रशंसित शोध कर पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त राजनांदगांव के दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन का कहना है कि 'मूकमाटी' मानवीय आस्था और मानव-मूल्यों का दस्तावेज़ है। युगीन समस्याओं के समाधान का अचूक स्रोत है। वह अध्यात्म व काव्य और काव्य व मानव-धर्म के अभेद की उद्घोषिका है। डॉ. जैन कहते हैं कि 'कामायनी' में जयशंकर प्रसाद जी ने जिस प्रकार मानवता के स्वर फूंके हैं, संत-कवि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने 'मूकमाटी' में आतंकवाद के अंत व अनन्तवाद के श्रीगणेश से मानवता की जीत का मंगल गान रचा है ।
आचार्य प्रवर के संयम स्वर्ण महोत्सव पर डॉ. जैन ने कहा कि 'मूकमाटी' उनके जीवन का अब तक का सार सृजन है। कवि की भावना सर्व मंगल की कामना के रूप में अभिव्यक्त हुई है। 'सब की जीवन लता हरित भरित विहंसित' होने का भाव स्वयं भारतीय संस्कृति की विशेषता है। 'मूकमाटी' में माटी का मौन ही जैसे सब कुछ कहता चलता है। वहीं, अंततः वह लौकिक,आध्यात्मिक और दार्शनिक-नीतियों का त्रिवेणी संगम सिद्ध होती है। डॉ. जैन कहते हैं कि वस्तुतः आचार्य श्री का यह कालजयी महाकाव्य सार्थक पुरुषार्थ की चरम उपलब्धि का मंगल कलश है।
चर्चा के दौरान प्रोफ़ेसर चंद्रकुमार जैन ने बताया कि आचार्य प्रवर का मूकमाटी महाकाव्य हिंदी साहित्य ही नहीं, विश्व साहित्य की अभूतपूर्व उपलब्धि है। यह आधुनिक हिंदी काव्य संसार का भी गौरव ग्रन्थ है। इसका पूरा परिवेश मानवतामय है। संयम,समन्वय और सामंजस्य इस ग्रन्थ की आवाज़ है। मूकमाटी दरअसल आत्म विकास के संघर्ष को हर्ष में बदलने वाला अक्षर-अक्षर सकारात्मक दस्तावेज है। मानव सेवा, करुणा, दया, अहिंसा के मूल्य इस महाकाव्य को आधुनिक सन्दर्भों में प्रासंगिक बनाते हैं।मुकमाटी को सिर्फ पढ़ना पर्याप्त नहीं है बल्कि उसे एक महान तपस्वी, महायोगी, संत कवि की आत्मा के संगीत के रूप में सुनना चाहिए।
डॉ. जैन आगे मर्म भरे शब्दों में कहते हैं - माटी जैसे सबके जीवन से जुड़ी है, वैसे आचार्य विद्यासागर जी का जीवन और सृजन भी सब के लिए है। मूकमाटी के अभुदय और विकास की कहानी है। आदमी के एक अदद इंसान बन जाने की दास्तान है। मूकमाटी महाकाव्य एक कृति मात्र नहीं, व्यक्तित्व के पूर्ण रूपांतरण का राजमार्ग है। डॉ. जैन ने मूकमाटी का यह अंश साझा करते हुए कहा कि जीवन निर्माण में व्यक्ति के दो रूप इस तरह सामने आते हैं -
इस युग के / दो मानव / अपने आप को / खोना चाहते हैं / एक भोग-राग / मद्यपान को चुनता है / और एक तप-त्याग को / आत्मध्यान को धुनता है / कुछ ही क्षणों में / दोनों होते / विकल्पों से मुक्त / फिर क्या कहना / एक शव के समान / निरा पड़ा है / और एक / शिव के समान खरा उतरा है।