
दिन अगर है दिन ही लिख गर रात है तो रात लिख
मैं समझता हूँ मोहब्बत का हर एक ग़म और फरेब
मुझको अपनी दास्तां लिख दिल के सब ज़ज़्बात लिख
क़ैद हैं तेरे भी दिल में सैकड़ों ग़ज़लें कहीं
आ कलम क़ागज़ उठा लिखने की कर शुरूआत लिख
एक आँसू ज़िंदगी है एक आँसू मौत है
ज़िंदगी की बूँद लिख और मौत की बरसात लिख
यूँ न कर दुनिया की बातें दर्द को होंठों पे ला
दिल में है ग़म का समंदर तू उसी की बात लिख
तू मुझे अच्छा बना मेरी बुराई कह मुझे
दोस्त है तो दे मुझे ऐसी कोई सौगात लिख
आज भी मातम जहाँ है ज़िंदगी वीरान है
जा उन्हीं के झोपड़ों में उनके भी हालात लिख
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श्री राजमोहन चौहान की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत