
लीक से हटकर हुआ
अपराध मुझसे मानता हूँ
कहूँ सूरज के आगे दीप मैंने रख दिया है !
इन्द्रधनुषी स्वप्न का बिखराव मैंने खूब देखा
वक़्त का रूठा हुआ बर्ताव मैंने ख़ूब देखा
पर सुबह की चाह मैंने ताक पर रखना न जाना
हर चुनौती को सहज जीवन का स्वीकृत सच लिया है
प्रश्नों के उत्तर नए देकर उलझना जनता हूँ
और हर उत्तर में गर्भित प्रश्न को पहचानता हूँ
जाने क्यों संसार मेरे प्रश्न पर कुछ मौन सा है
बेसबब इस मौन का हर स्वाद मैंने चख लिया है
स्वप्न मृत होते नहीं यदि मन की आँखें देख पाएँ
धीरे-धीरे ही सही पर दीप की लौ मुस्कुराए
कोई समझे या न समझे, मान दे या हँसे मुझ पर
लड़ सकूँ हर अँधेरे से मैंने ऐसा हठ किया है
लीक से हटकर ......