जो प्यासे थे घुटनों के बल नदी किनारे बैठ गए
अंधियारे के तालमेल की अपनी एक कहानी है
दिन वाले सूरज के घर में रात सितारे बैठ गए
बैठे हैं कुछ लोग इस तरह लोकतंत्र की छाया में
जैसे किसी पेड़ के नीचे कुछ बंजारे बैठ गए
चिड़िया सी ज़िंदगी उड़ानें भरती नहीं फिज़ाओं में
छिपकर किसी नींद पर कुछ सुकुमार सहारे बैठ गए
अमन चैन खुदकशी कर रहा है खेतों की मेड़ों पर
जब से गंवई पंचायत में कुछ हत्यारे बैठ गए
देशी ताल विदेशी बगुलों की चाहत में जीता है
मछली बिना शिकार-शिकारी कांटा मारे बैठ गए
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प्रभा दीक्षित,कानपुर की ग़ज़ल...देशबंधु से साभार