Saturday, August 29, 2009
मेरा क्या...!
मत आना
क्या करेगा यहाँ आकर
आने-जाने का खर्च बचेगा
तेरे बच्चे के कपड़े आ जायेंगे
जानती हूँ
रिक्शा चलाते-चलाते
तुझे टीबी हो गई है
पहले अपना इलाज़ करा
मेरा क्या...
बूढ़ी काया
चिंता मत करना
पुराने पड़ोसियों में नेम-धरम है...!
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विषपायी की कविता 'नई दुनिया' से साभार प्रस्तुत.
Friday, August 28, 2009
आशा और अभिलाषा.
Tuesday, August 25, 2009
बेवफाई हर तरफ़....!
धीरे धीरे मर रहा आँखों का पानी हर तरफ़
फ़िर भी कुछ दिखता नहीं जबकी उजाला ख़ूब है
रौशनी सी तीरगी की तर्जुमानी हर तरफ़
मुल्क तो दिखता नहीं है मुल्क में यारों कहीं
दिख रही लेकिन है उसकी राजधानी हर तरफ़
किसको-किसको रोइएगा और क्या-क्या ढोइए
एक जैसी लानतें और लनतरानी हर तरफ़
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नूर मोहम्मद 'नूर'Friday, August 21, 2009
ख़ुद से सही पहचान हो जाए....!
उसी दिन सारी दुनिया में अलग ही शान हो जाए
ये सुख-दुःख, लाभ-हानि, कुछ नहीं बस फेर है मन का
सबब इन सब का क्या है जिस घड़ी ये ज्ञान हो जाए
फ़रक छोटे बड़े का भी बहुत तकलीफ देता है
सहज समभाव बन जाए विलग अभिमान हो जाए
जो हम सब एक हों अपना-पराया कौन रह जाए
नहीं कुछ भी कहीं अन्तर अगर संज्ञान हो जाए
जो दुनिया चल रही है तो चलाने वाला भी होगा
अगर जग के नियंता का जरा भी भान हो जाए
कोई भी कामयाबी छुप नहीं पाती छुपाने से
बिना बोले ही सत् की बात कानों कान हो जाए।
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डॉ.बी.पी.दुबे की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.