चांदी-सी रातें, दिल सोने,
फिर भी अपने-अपने रोने।
घर में रहे विदेशी होकर,
सुख-दुःख की खा-खाकर ठोकर।
हो न सके हम नमक ठीक से,
निगल रहे हैं ग्रास अलोने।
झिलमिल कोई सुबह न कौंधी,
सांझ पड़े गहराई रतौंधी।
शादी हुई उधारी वाली,
हो न सके फिर अपने गौने।
अपनी रातें रहीं हुआतीं,
बिला गए दिन संगी-साथी।
चांदी खोटी,खोटे सोने,
आदमजात हुए क्यों बौने ?
========================
नईम साहब की रचना साभार प्रस्तुत.
Wednesday, March 31, 2010
Thursday, March 25, 2010
झूठे का मुँह काला नहीं देखा !
कहावत है, ज़बां पर सत्य की ताला नहीं देखा
मगर हर शख्स तो सच बोलने वाला नहीं देखा
अगर जागी तलब तो आँख से पी ली, मगर हमने
कभी सागर नहीं ढूँढा, कभी प्याला नहीं देखा
पहुँचना था जिन्हें मंज़िल पे वो कैसे भी जा पहुँचे
डगर की मुश्किलें या पाँव का छाला नहीं देखा
मुहब्बत सिर्फ एक एहसास से बढ़कर बहुत कुछ है
वफ़ा की आँख में हमने कभी जाला नहीं देखा
तुम्हारा मानना होगा कि सच का बोलबाला है
मगर हमने यहाँ झूठे का मुँह काला नहीं देखा
==================================
श्री मनोज अबोध की ग़ज़ल साभार.
मगर हर शख्स तो सच बोलने वाला नहीं देखा
अगर जागी तलब तो आँख से पी ली, मगर हमने
कभी सागर नहीं ढूँढा, कभी प्याला नहीं देखा
पहुँचना था जिन्हें मंज़िल पे वो कैसे भी जा पहुँचे
डगर की मुश्किलें या पाँव का छाला नहीं देखा
मुहब्बत सिर्फ एक एहसास से बढ़कर बहुत कुछ है
वफ़ा की आँख में हमने कभी जाला नहीं देखा
तुम्हारा मानना होगा कि सच का बोलबाला है
मगर हमने यहाँ झूठे का मुँह काला नहीं देखा
==================================
श्री मनोज अबोध की ग़ज़ल साभार.
Tuesday, March 23, 2010
मुस्कान घोलिए....
रह जाए टूटकर कोई ऐसा न बोलिए
ताला है दिल तो प्यार की चाबी से खोलिए
ख़ुद का कमाल देखना चाहें तो आप भी
चेहरे के हाव-भाव में मुस्कान घोलिए
खुशियाँ मिलीं तो प्यार में सबमें वो बाँट दीं
ग़र ग़म मिले तो बैठ के चुपचाप रो लिए
रहजन मिले हैं बारहा रहबर की शक्ल में
वो हम न थे जो रहजनों के साथ हो लिए
ऊँचाइयों के बाद ढलानें तो आएंगी
'कौशल' जरा सी बात पे इतना न डोलिए
================================
श्री मुकुंद कौशल की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.
ताला है दिल तो प्यार की चाबी से खोलिए
ख़ुद का कमाल देखना चाहें तो आप भी
चेहरे के हाव-भाव में मुस्कान घोलिए
खुशियाँ मिलीं तो प्यार में सबमें वो बाँट दीं
ग़र ग़म मिले तो बैठ के चुपचाप रो लिए
रहजन मिले हैं बारहा रहबर की शक्ल में
वो हम न थे जो रहजनों के साथ हो लिए
ऊँचाइयों के बाद ढलानें तो आएंगी
'कौशल' जरा सी बात पे इतना न डोलिए
================================
श्री मुकुंद कौशल की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.
Sunday, March 21, 2010
खबर बनती है.
क़त्ल करने या कराने पे खबर बनती है
अस्मतें लुटने, लुटाने पे खबर बनती है
कोई पूछेगा नहीं लिख लो किताबें कितनी
अब किताबों को जलाने पे खबर बनती है
नाचने वाले बहुत मिलते हैं इस दुनिया में
अब तो दुनिया को नचाने पे खबर बनती है
बात ईमां की करोगे तो रहोगे गुमनाम
आज तो जेल में जाने पे खबर बनती है
कुछ नहीं होगा बसाओगे जो उजड़े घर को
आग बस्ती में लगाने पे खबर बनती है
भूख से रोता है बच्चा तो उसे रोने दे
दूध पत्थर को पिलाने से खबर बनती है
कितना नादां है अनिल उसको ये मालूम नहीं
आग पानी में लगाने पे खबर बनती है
===============================
डॉ.अनिल कुमार जैन की रचना...
नई दुनिया २१ मार्च २०१० से साभार.
अस्मतें लुटने, लुटाने पे खबर बनती है
कोई पूछेगा नहीं लिख लो किताबें कितनी
अब किताबों को जलाने पे खबर बनती है
नाचने वाले बहुत मिलते हैं इस दुनिया में
अब तो दुनिया को नचाने पे खबर बनती है
बात ईमां की करोगे तो रहोगे गुमनाम
आज तो जेल में जाने पे खबर बनती है
कुछ नहीं होगा बसाओगे जो उजड़े घर को
आग बस्ती में लगाने पे खबर बनती है
भूख से रोता है बच्चा तो उसे रोने दे
दूध पत्थर को पिलाने से खबर बनती है
कितना नादां है अनिल उसको ये मालूम नहीं
आग पानी में लगाने पे खबर बनती है
===============================
डॉ.अनिल कुमार जैन की रचना...
नई दुनिया २१ मार्च २०१० से साभार.
Saturday, March 20, 2010
ख़ूब कही.....!
जीवन हमें जो ताश के पत्ते देता है,
उन्हें हर खिलाड़ी को स्वीकार करना पड़ता है।
लेकिन जब पत्ते हाथ में आ जाएँ,
तो खिलाड़ी को यह तय करना ही होता है कि
वह उन पत्तों को किस तरह से खेले
कि.....वह बाज़ी जीत सके।
===============================
वाल्टेयर
=========================
बोले या लिखे गए दुखद शब्दों में
सबसे दुखद शब्द हैं.....
" मैं यह काम कर सकता था। "
================================
व्हिटियर
=========================
उन्हें हर खिलाड़ी को स्वीकार करना पड़ता है।
लेकिन जब पत्ते हाथ में आ जाएँ,
तो खिलाड़ी को यह तय करना ही होता है कि
वह उन पत्तों को किस तरह से खेले
कि.....वह बाज़ी जीत सके।
===============================
वाल्टेयर
=========================
बोले या लिखे गए दुखद शब्दों में
सबसे दुखद शब्द हैं.....
" मैं यह काम कर सकता था। "
================================
व्हिटियर
=========================
Saturday, March 13, 2010
परस्पर....!
अच्छा मनुष्य अच्छा मनुष्य
जरा उस मनुष्य को देखो
जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है
रोता हुआ मनुष्य अच्छा है
या अच्छा मनुष्य रोता हुआ है
एक सड़क पर मैंने देखे दो लोग
एक अच्छा था और रोता था
एक रोता था और अच्छा था
उन्हें इसका एहसास भी नहीं था
और अब तो दोनों के चेहरे
एक दूसरे में प्रवेश कर गए थे
उलझते-झगड़ते गडमड होते हुए।
===================================
श्री मंगलेश डबराल की कविता ....हरिभूमि के
रविवारीय अंक १४ मार्च २०१० को प्रकाशित...साभार
जरा उस मनुष्य को देखो
जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है
रोता हुआ मनुष्य अच्छा है
या अच्छा मनुष्य रोता हुआ है
एक सड़क पर मैंने देखे दो लोग
एक अच्छा था और रोता था
एक रोता था और अच्छा था
उन्हें इसका एहसास भी नहीं था
और अब तो दोनों के चेहरे
एक दूसरे में प्रवेश कर गए थे
उलझते-झगड़ते गडमड होते हुए।
===================================
श्री मंगलेश डबराल की कविता ....हरिभूमि के
रविवारीय अंक १४ मार्च २०१० को प्रकाशित...साभार
Subscribe to:
Posts (Atom)