Saturday, March 26, 2011

मुझे कुछ नहीं आता...


तुमने ठीक ही कहा

कि मुझे कुछ नहीं आता


आखिर आता ही क्या है मुझे?

मैं नहीं कर सकता झूठा वादा

नहीं दे सकता किसी को धोखा

झूठ नहीं बोल सकता

जल्दी ऊंचाइयां छूने की चाह में

तिलांजलि नहीं दे सकता

अपने संस्कारों को

आगे बढ़ने की होड़ में

नहीं छोड़ सकता अपनों को


इसीलिए मुझे कुछ नहीं आता

तुमने ठीक ही कहा

सरवाइव नहीं कर सकता

इस शहर में...

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गुरू सरन लाल की रचना साभार प्रस्तुत.

Thursday, March 17, 2011

सुर्ख़ हथेलियाँ


पहली बार
मैंने देखा
भौंरे को कमल में
बदलते हुए,
फिर कमल को बदलते
नीले जल में,
फिर नीले जल को
असंख्य श्वेत पक्षियों में,
फिर श्वेत पक्षियों को बदलते
सुर्ख़ आकाश में,
फिर आकाश को बदलते
तुम्हारी हथेलियों में,
और मेरी आँखें बंद करते
इस तरह आँसुओं को
स्वप्न बनते
पहली बार मैंने देखा।
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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की कविता साभार प्रस्तुत

Saturday, March 12, 2011

अगले जनम में...!


अगले जनम में
तुम बन जाना ख़ुशी
मैं बनूंगा दुःख
तब हरेक होंठ पर
लाल फूल सा खिल जाना तुम
मैं भी बहूंगा
हरेह आँख से
झरने सा

अगले जनम में
तुम बन जाना मिसरी
मैं बनूंगा नमक
तब तुम घुलकर मीठा करना
दूध का जीवन
मैं भी करता रहूँगा दाल को खारा

अगले जनम में
तुम बन जाना समुद्र
मैं बनूंगा चाँद
तब तुम अपने बालक ज्वार को
तट पर गोद लिए आना
मैं भी टहलाने लाऊंगा
अपनी बिटिया चांदनी को

अगले जमन में
तुम बन जाना कागज़
मैं बनूंगा कलम
तब तुम धरती सा उपजाऊ बन जाना
मैं भी हल की तरह चलूंगा
तब ज़रूर लहलहायेगी कविता की फसल।
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रंजीत भट्टाचार्य की रचना साभार प्रस्तुत.