Friday, July 31, 2009

दिल को संभलने नहीं देते...!

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम हो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हमको जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करुँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फरियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
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अकबर इलाहाबादी की ग़ज़ल.

Tuesday, July 28, 2009

किताबों का सफ़र मैंने किया....!

क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया

उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफर मैंने किया

तू तो नफ़रत भी न कर पायेगा उस शिद्दत के साथ

जिस बला का प्यार तुझसे बेख़बर मैंने किया

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेचोख़म

ज़िंदगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया

शोहरतों की नज़र कर दी शेर की मासूमियत

इस दीये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया

चंद ज़ज़्बाती से रिश्तों को बचाने को वसीम

कैसा-कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया ===============================

वसीम बरेलवी साहब की ग़ज़ल साभार.

Monday, July 27, 2009

एक वृक्ष भी बचा रहे...!

अन्तिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ
एक वृक्ष जाएगा
अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर
साथ जाएगा एक वृक्ष
अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझसे पहले

'कितनी लकड़ी लगेगी ?'
श्मशान की टालवाला पूछेगा
गरीब से गरीब भी सात मन तो लेता ही है

लिखता हूँ अन्तिम इच्छाओं में
कि बिजली के दाह घर में हो मेरा संस्कार
ताकि मेरे बाद
एक बेटे और एक बेटी के साथ
एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में।
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कवि श्री नरेश सक्सेना की कविता साभार

Friday, July 24, 2009

डरने से क्या हल निकलेगा ?

डरने वाले कब दुःख की
काली रातों से जूझ सके हैं

सुखी वही हो पाए मर्म

दुखों का जो भी बूझ सके हैं

इतना भी नाकाफ़ी है कि

डर मन को बरबस न सताए

डर से भी अच्छा कुछ है हम

ख़ुद से क्या यह पूछ सके हैं ?

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Thursday, July 23, 2009

एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे...!

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे

कहकहा आँख का बरताव बदल देता है
हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे
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वसीम बरेलवी साहब की ग़ज़ल साभार.

Tuesday, July 21, 2009

वो बेखयाल मुसाफ़िर...!

मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारों
के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों

वो बेखयाल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारों
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों

मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी
के अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारों

तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था
मैं उसके घर का पता किसको पूछता यारों
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वसीम बरेलवी की ग़ज़ल साभार.

Sunday, July 19, 2009

इतिहास बदल सकता है....!

आदमी चाहे तो विश्वास बदल सकता है,
ये घटा और ये आकाश बदल सकता है !
आदमी ही यहाँ इतिहास लिखा करता है,
आदमी चाहे तो इतिहास बदल सकता है !
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Thursday, July 16, 2009

चरण धूलि तल में.

मेरा मस्तक अपनी चरण धूलि तल में झुका दे
प्रभू ! मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !
अपने झूठे महत्त्व की रक्षा करते हुए
मैं केवल अपनी लघुता दिखाता हूँ
अपने ही को घेरे मैं
घूमता-घूमता प्रतिपल मरता हूँ
प्रभू मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !
मात्र अपने निजी कार्यों से ही
मैं अपने को प्रचारित न करुँ !
तू अपनी इच्छा मेरे जीवन के
माध्यम से पूरी कर !
मैं तुझसे चरम शांति की भीख माँगता हूँ
प्राणों में तेरी परम कांति हो !
मुझे ओट देता मेरे
ह्रदय कमल में तू खड़ा रह !
प्रभू मेरा समस्त अहंकार मेरे
आँखों के पानी में डुबा दे !
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गुरुदेव की 'गीतांजलि' से सश्रद्ध.

Tuesday, July 14, 2009

तुम नहीं आए...!

नदी के हाथ निर्झर की मिली पाती समंदर को
सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आए
किसी को देखते ही आपका आभास होता है
निगाहें आ गईं परछाइयों तक तुम नहीं आए
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बलबीर सिंह 'रंग'

Monday, July 13, 2009

शेर...लाज़वाब !

मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसां इक़बाल
इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का
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इक़बाल
लबों पे उसके कोई बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खपा नहीं होती
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मुनव्वर राणा
सपना झरना नींद का,जागी आँखें प्यास
खाना,खोना,खोजना साँसों का इतिहास
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निदा फ़ाजली