Monday, May 25, 2009

शूलों पर ही सत्य का संधान होता है....!

कष्टों में ही मानवीयता का ज्ञान होता है,
शूलों पर ही सत्य का संधान होता है।
दीनों की आह सुन जो सेवा का व्रत ले,
धरा पर वही सच्चा इंसान होता है।।
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जीवन के लिए धन है, धन के लिए जीवन नहीं,
तन के लिए कपड़ा है, कपड़े के लिए तन नहीं।
साधन और साध्य का अन्तर समझना ज़रूरी है,
चेतन के लिए शरीर है, शरीर के लिए चेतन नहीं।।
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मुनि मणिप्रभ सागर जी द्वारा रचित...साभार.

Wednesday, May 20, 2009

सिर्फ़ एक शेर...!

ज़मीर काँप तो जाता है आप कुछ भी कहें
वो हो गुनाह से पहले कि हो गुनाह के बाद
गवाह चाह रहे थे वो मेरी बेगुनाही का
ज़बां से कह न सका कुछ 'ख़ुदा गवाह' के बाद
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शायर - कृष्ण बिहारी 'नूर'

Saturday, May 2, 2009

महकूंगा ज़मानों तक...!

तुम सोच रहे हो बस,बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक।
हर वक़्त फिज़ाओं में, महसूस करोगे तुम,
मैं प्यार की खूशबू हूँ, महकूंगा ज़मानों तक।।
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श्री आलोक श्रीवास्तव का मुक्तक...साभार.

Friday, May 1, 2009

लीक पर वो चलें...!

लीक पर वो चलें
जिनके चरण दुर्बल
और हारे हैं
हमें तो अपनी ही यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पथ ही प्यारे हैं।
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श्री सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की
कविता साभार।