Wednesday, August 4, 2010

मुक्तक....

माटी को रौंदो इतना अपने पाँवों से,
कि कला- करों से माटी की मूरत गढ़ जाए।
कई सीढियां चढ़ीं अभी अनगिन बाक़ी हैं,
जिन पर चढ़ कर ये जीवन ऊपर चढ़ जाए।।
==============================