Saturday, May 31, 2008

दर्द छुपाया लगता है !


ये जो मेरे चेहरे पर खुशियों का साया लगता है
अपनों से ही मैंने अपना दर्द छुपाया लगता है

सच है दुनिया वाले उसको मेरा अपना कहते हैं
मेरा हमदम है लेकिन क्यों मुझे पराया लगता है

उम्मीदों के दीप यहाँ जलते आए हैं बरसों से
फिर दहशत, अवसाद का बस्ती में क्यों साया लगता है

जैसे शीशे टूट रहे हों, टूट रहे हैं रिश्ते भी
शायद संबंधों पर एक भूचाल-सा आया लगता

बातें गैरों से अपनेपन की क्यों करता दीवाना
शायद उसको भी अपनों ने बहुत सताया लगता है

इस दुनिया में सोचो हसरत किसकी पूरी होती है
जिसको देखो वही अधूरा,कुछ न पाया लगता है

Friday, May 30, 2008

महक वफ़ा की रखो !


रहो ज़मीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो
तुम अपने सोच को हर वक़्त लाज़वाब रखो

खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो

उभर रहा है जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजाले में रहो मत धुंध का हिसाब रखो

मिलो तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वफ़ा की रखो और बेहिसाब रखो

लिबास कोई भी पहनो मगर ये याद रहे
तुम अपने क़द को मगर यूँ न बेहिज़ाब रखो

Wednesday, May 28, 2008

आँखें हैं सजल लिख रहा हूँ मैं !


जब तक मेरी आँखें हैं सजल लिख रहा हूँ मैं
खुश हूँ कि ज़िन्दगी की ग़ज़ल लिख रहा हूँ मैं

गुदडी में भी लाल होते हैं मालूम है मुझको
कुटिया में भी खिलते हैं कमल लिख रहा हूँ मैं

जो खेत थे सर-सब्ज़ वो सब बाँध में डूबे
सरकारी महकमे का दख़ल लिख रहा हूँ मैं

जो हाथ जोड़ता है इलेक्शन के दौर में
कितना करेगा कल वही छल लिख रहा हूँ मैं

मज़बूर की आँखों में लहू क्यों उतर आया
क्यों आँख हुई मेरी सजल लिख रहा हूँ मैं

मुश्किल है बहुत आग के दरिया से गुज़रना
ये प्यार नहीं इतना सरल लिख रहा हूँ मैं

मेरा सवाल है कि मैं बिल्कुल गलत नहीं
एक गुलबदन को ताजमहल लिख रहा हूँ मैं

Tuesday, May 27, 2008

आप फरमाते हैं !


सौ-सौ तरह से खुश है ये दिल झूम रहा है
जब आपने पूछा है तो फिर पूछना है क्या !

वो दूर अंधेरे में चमकता है जो जाने क्या है
अच्छा तो मेरा दिल अभी जल ही रहा है !
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- सलीम अहमद ज़ख्मी

कभी सपने में भी सोचा न था ये हादसा होगा
मैं तुमको भूल जाऊंगा ये मेरा फ़ैसला होगा

जुनूं पल भर का है ठहरो जरा सोचो कहा मानो
अगर नफ़रत भड़क उठी तो किसका फायदा होगा ====================================
- अब्दुस्सलाम कौसर

Sunday, May 25, 2008

बकौल शायर...


शायरे फितरत हूँ मैं,जब फिक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बन के ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी
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बुलंद इक़बाल वो है जिससे तुमको प्यार हो जाए
सिपाही पर नज़र डालो तो थानेदार हो जाए
- नामालूम
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आरजू ले के कोई घर से निकलते क्यों हैं ?
पाँव जलते हैं तो फिर आग पर चलते क्यों हैं ?
- वाली आरसी
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बेवज़ह मन पे कोई बोझ न भारी रखिए
ज़िंदगी ज़ंग है इस ज़ंग को ज़ारी रखिए
- डॉ.उर्मिलेश
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छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है,बाँहों भर संसार
- निदा फाज़ली
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खूब गए परदेश कि अपने दीवारों दर भूल गए
शीश महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गए
- नज़ीर
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कल रात एक अनोखी बात हो गई
मैं तो जागता रहा ख़ुद रात सो गई
- अनूप भार्गव
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किसी अमीर की महफ़िल का ज़िक्र क्या है अमीर
खुदा के घर भी न जाऊँगा बिन बुलाए हुए
- अमीर मीनाई
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Saturday, May 24, 2008

शायरी.....पसंद मेरी !


अभी आदाबे नज़र आपको कम आते हैं
आईना हाथों से रख दीजिये हम आते हैं
- बासित भोपाली
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एक-एक करके हुए जाते हैं तारे रौशन
मेरी मंज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं
- फैज़
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देखा नहीं किसी को हिक़ारत से आज तक
मुझसे मेरी निगाह की कीमत न पूछिए
- वहसत कलकत्तवी
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न तो इल्मो फ़न की दौलत न अदब से वाकफीयत
वो मुझे परख रहे हैं नहीं जिनका था ठिकाना
- अब्दुस्सलाम कौसर

Friday, May 2, 2008

न डरना ग़म से तुम.


कभी हँसना, कभी रोना
ये तो बस आम बातें हैं
न डरना ग़म से तुम
ये गम बड़े ही काम आते हैं
कभी जब वक्त का दरिया
लगे तूफ़ान से लड़ने
तो गम के अश्क ही
कश्ती को यारों थाम लाते हैं.

Thursday, May 1, 2008

मई दिवस पर.....नमन !


ख़ुद मेहनत और पसीने से
जो मिल जाए वह खाते हैं
संसार सुखी जो बना रहे
पर सब दुःख ख़ुद पी जाते है
जिन श्रमवीरों के हाथों की
मिट गईं लकीरें उन्हें नमन
जिनकी फौलादी हिम्मत से
टूटीं जंजीरें उन्हें नमन ....!