Sunday, February 22, 2009

मिले आस्कर सौ-सौ बार...!


आस आस्कर की पूरी थी

पूर्ण हुई यह कला-साधना

भारत की झुग्गी बस्ती के

अँधियारे को कम न आँकना

उधर मुस्कराहट पिंकी की

सुनो सुनाती नई कहानी

बुझी हुई उम्मीदों में भी

छुपी रौशनी बड़ी सयानी

अल्ला रख्खा 'रहमानों' से

भारत रहे सहज 'गुलज़ार'

यही कामना हम करते हैं

मिले आस्कर सौ-सौ बार !

==================

Tuesday, February 17, 2009

अपना नीड़, घरौंदा अपना...!

अपना नीड़, घरौंदा अपना
राहें अपनी, सपना अपना
अपनेपन की बात अलग है
अपना आख़िर होता अपना
मिल जाए दुनिया सारी पर
नहीं मिटेगा यह सूनापन
हस्ती अपनी मिल जाए बस
टेक से तिल भर मत तुम हटना
अपना आख़िर होता अपना...!
=====================

Sunday, February 15, 2009

सुनी कहानी जैसी हो....!


बुंदेले हरबोलों से तुम

सुनी कहानी जैसी हो

वीरोचित जीवन-गरिमा की

दिव्य निशानी जैसी हो

सत्याग्रह की प्रथम नेत्री

कोटि-कोटि हो तुम्हें नमन

मातृभूमि पर लुटने वाली

एक रवानी जैसी हो ....!

===========================

सेनानी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की

पुण्य तिथि १५ फरवरी पर सश्रद्ध


Friday, February 13, 2009

कलमकार कुछ कह जाता है...!


बड़ी-बड़ी बातों पर लिखने वाले

लोग बड़े मिलते हैं

पर छोटी बातों के हक़ में

कितने लोग खड़े मिलते हैं ?

जब-जब मामूली विषयों पर

कलमकार कुछ कह जाता है

मुझको मोती जैसे उसके

शब्द सदैव जड़े मिलते हैं

====================

Wednesday, February 11, 2009

लगन सूरज की पैदा हो गयी...!


लगन सूरज की पैदा हो गई

लो तमस भी भागा

अगन धीरज की पैदा हो गई

संकल्प भी जागा

बुझे मन से कभी ये ज़िंदगी

रौशन नहीं होती

तपन ज़ज्बे की पैदा हो गई

सोने में सुहागा

====================

Tuesday, February 10, 2009

सफ़र में हार न मानें...!


जारी रही तलाश तो

हर आस को जीवन मिलेगा

भारी रहा विश्वास तो

सहरा में भी सावन मिलेगा

डगर में पाँव और जुम्बिश

सफ़र में हार न मानें

तो बेशक ज़िंदगी को ज़िंदगी का

मीत वह मधुबन मिलेगा...!

========================

Monday, February 9, 2009

कह पाना जिसको हो मुश्किल...!


कह पाना जिसको मुश्किल हो

बात वही मैं कह जाता हूँ

सह पाना जिसको मुमकिन हो

हर पीड़ा मैं सह जाता हूँ

दुनिया रुदन जिसे कहती है

मैं स्वर पंचम में उस दुःख के

घर में बनकर सहज सहोदर

जब तक चाहे रह जाता हूँ

====================

Wednesday, February 4, 2009

विजयी का वह विश्व-कर्म है...!


सधे हुए हाथों से सेवा

मानवता का सहज धर्म है

कष्ट हरे जो हर हारे का

विजयी का वह विश्व-कर्म है

माना जीवन पाहन-सा है

लेकिन पावन इसे बनाएँ

पत्थर पर भी फूल खिला दें

जो भीतर से अगर नर्म हैं......!

======================

Tuesday, February 3, 2009

तब तक सजग मुझे रहना है...!


जितना चल सकता हूँ मैं

उतने क़दमों तक हक मेरा है

जितना जल सकता हूँ बस

उतनी किरणों तक ही डेरा है

जब तक मात न नींदों की हो

तब तक सजग मुझे रहना है

रातों से क्यों गिला मुझे हो

कब सुबहों ने मुँह फेरा है ?
====================