वक्त की खामोशियों को तोड़कर आगे बढो
अपने गम ,अपनी खुशी को छोड़कर आगे बढो
जिन्दगी को इस तरह जीने की आदत डाल लो
हर नदी की धार को तुम मोड़कर आगे बढो
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Thursday, February 28, 2008
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4 comments:
जिन्दगी को इस तरह जीने की आदत डाल लो
हर नदी की धार को तुम मोड़कर आगे बढो
Waah waa jain saheb...bahut khoob.Bahut aasha vadi muktak.
Aap ka mere blog par aane aur ghazal padhne ka shukriya.Aap ka sher vastav men lajawab laga. Sneh banaye rakhen.
Neeraj
बहुत खूब!!
आपका ब्लॉग देखकर और आपकी लेखनी का रसास्वादन कर बढ़िया लगा डॉक्टर साहब!!
आप छत्तीसगढ़ से ही है यह जानकर और भी खुशी हुई!!
शुभकामनाएं
अत्यंत प्रेरक पंक्तियां।
आपसे जुड़ाव सुखद रहेगा...लिखते रहें।
मेरे ब्लॉग पर आपकी सचेत प्रतिक्रियाओं के लिए हार्दिक आभार।
बहुत अच्छी कविता है।
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