जितना दर्द मुझे तुम दोगे मैं उतने ही गीत लिखूंगा
शोर मचाओ तुम कितना भी पर मैं तो संगीत रचूंगा
सीख लिया है मैंने जीना पथ की अनगिन बाधाओं से
रोको चाहे मुझे कहीं भी मैं मंजिल पर जीत लिखूंगा
Friday, March 14, 2008
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6 comments:
bahut khub
क्या बात है, बहुत खूब!!
वाह साहब. बहुत बढ़िया.
"रोको चाहे मुझे कहीं भी मैं मंजिल पर जीत लिखूंगा"
कितनी सकारात्मक सोच से भरी हैं आप की पंक्तियाँ वाह वा...आनंद आ गया. यूँ ही मार्ग दर्शन करते रहें.
नीरज
बहुत खूब!!बहुत सारगर्भित , बहुत सुंदर !!
बढ़िया
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