बहुत संभावनापूर्ण है
न लिख पाने की भीत !
फिर भी कोरे काग़ज़ की मासूमियत पर
कुछ मासूम से लफ़्ज लिखकर तो देखिए ।
गर काग़ज़ की मासूमियत याद है
तो लिखी गई मासूम इबारत कैसे भूलेगी ?
वह तो यादों की धरोहर बन
सपनो का झूला झूलेगी ।
सफेद पर, सफेद से, सफेद लिखा
लिख भी जाता है और
वह अनलिखा दिख भी जाता है !
और जो दिखता है
उसे याद रखने की चिंता नहीं सताती
वह कोरा कागज बन जाता है एक थाती !
Monday, March 17, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
bahut sunder
कुछ लिखने के बोझिल उकसावों के बीच एक सार्थक प्रेरणा है ये पंक्तियां। काग़ज़ और इबारत के क़िरदार को साफ़ करती। कहीं ... संदेश सा देती कि जो याद रह जाए वही है लेखन की सार्थकता और जो लिखा जाए वह काग़ज़ के कोरेपन को सार्थक करे।
वाह डॉक्टर साहब, हमें पसंद आईं ये पंक्तियां। ब्लागजगत के संदर्भ में भी काफी अर्थवत्ता है इनमें...
बहुत प्रेरक रचना है।बहुत बाढिया!
वह अनलिखा दिख भी जाता है !
और जो दिखता है
उसे याद रखने की चिंता नहीं सताती
वह कोरा कागज बन जाता है एक थाती !
Post a Comment