मधु -मादक रंगों ने देखो जीवन का श्रृंगार किया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है ।
वासंती उल्लास को केवल
फागुन का अनुराग न समझो
ढोलक की तुम थाप को केवल
फाग -राग ,पदचाप न समझो
जो भीतर से खुला उसी ने जीवन का मनुहार किया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है ।
पतझर में देखो झरना तुम
फिर वसंत का आना देखो
पीड़ा में क्रीड़ा जीवन की
आंसू में मुस्काना देखो
सुख -दुःख में यदि भेद नहीं है समझो जीवन पूर्ण जिया है ,
रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है .
Sunday, March 16, 2008
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1 comment:
सुंदर,
इस पंक्ति ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया कि
'रंग उसी के हिस्से आया जिसने मन से प्यार किया है '।
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