इस तरह रचो यह जीवनकि संगीत सहज सब मन भावन हो
इस तरह जियो यह जीवन
कि हर पल,हर क्षण नित ही पावन हो
टूटी-बिखरी बातों से बोलो
बात बनेगी कैसे प्यारे
इस तरह रहो जीवन में
कि जीवन में जीवन का नर्तन हो।
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श्री लीलाधर मंडलोई की कविताएँ
श्री विनोद कुमार शुक्ल मानवीय अस्मिता
आम आदमी की संवेदना और सपनों को
मैंने अकस्मात जीवन में यह परिवर्तन देखा है।
उठ रही है आस्था की अर्थी
ये महज़ उत्तेजना की बात है
कभी न हो आतंक कहीं,
लीजिए श्रीमान !
धरती में नई अब कोई धरती न बनाना
हिंदी है युग-युग की भाषा

उतरे थे ज़ंग में जो बड़े हौसले के साथ
तलवार भी उठा न सके मात खा गए
मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए
बस उनकी याद दिल में कसक बन के रह गई
आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए
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