Monday, September 1, 2008

तम बन गया प्रकाश...!

तम तो पथ में बहुत मिला

पर मैंने उसे प्रकाश बनाया

विष तो श्वांस-श्वांस में था

पर मैंने उसे मिठास बनाया

काँटे तो हर चरण बिछे

पर मैंने उनको फूल ही माना

पतझड़ तो गहरा आया

लेकिन मैंने मधुमास बनाया

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8 comments:

Adnan said...

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शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है।

अमिताभ मीत said...

पतझड़ तो गहरा आया

लेकिन मैंने मधुमास बनाया

बहुत अच्छा है भाई.

राज भाटिय़ा said...

पतझड़ तो गहरा आया

लेकिन मैंने मधुमास बनाया
बहुत ही सुन्दर
धन्यवाद

Smart Indian said...

बहुत सुंदर! ...मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये!

Abhishek Ojha said...

मुश्किलों से लड़ते रहने की प्रेरणा देती अनमोल रचना... एक बार और कहना चाहूँगा आपकी रचना में कलिष्टता की जगह सहजता और सुन्दरता है !

परसाईजी ने एक जगह व्यंग लिखा है 'कवि की बात समझ में आ जाए तो कवि काहे का !' और सच में अधिकतर ऐसी ही कविता होती है जो समझने के लिए बहुत दिमाग लगाओ और छोटी सी बात निकलती है... आपकी कवितायें ठीक इसके विपरीत होती हैं. यहाँ आना कभी व्यर्थ नहीं जाता.

आभार आपका !

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आप सब के सद्भाव पूर्ण
प्रेरक उद्गार का आभार.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई