इक नई पहचान का संकट सभी के रूबरू
खामखा की शान का संकट सभी के रूबरू
कौन,किसको,कब,कहाँ,कैसे किधर को ले गया
गुमशुदा ईमान का संकट सभी के रूबरू
सिरफिरे राजा हुए अंधेर नगरी में सभी
बेतुके फ़रमान का संकट सभी के रूबरू
देखने में तो बड़ी आसान लगती है ग़ज़ल
है मगर औजान का संकट सभी के रूबरू
आइना भी चाहता है झूठ अब तो बोलना
इक नई पहचान का संकट सभी के रूबरू
हम इसी दुविधा में डूबे साथ दें या रो पड़ें
हँस रहे शैतान का संकट सभी के रूबरू
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कुमार विनोद की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.
Saturday, October 9, 2010
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2 comments:
सिरफिरे राजा हुए अंधेर नगरी में सभी
बेतुके फ़रमान का संकट सभी के रूबरु.
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई !!
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