मेरी कविता
उन सबके सामने
सिर झुकाती है
जो हमारी दुनिया को
संभव और सुन्दर बनाते हैं
बिना जाने या बताए कि
ऐसा कर रहे हैं
आज मेरी कविता
सिर्फ उनकी स्तुति है।
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श्री अशोक वाजपेयी की कविता साभार प्रस्तुत
Wednesday, October 20, 2010
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