अगर बच सका तो
वही बचेगा हम सबमें
थोड़ा-सा आदमी –
जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता,
अपने बच्चे के नम्बर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर,
जो रास्ते पर पड़े घायल को सब काम छोड़कर
सबसे पहले अस्पताल पहुँचाने का जतन करता है,
जो अपने सामने हुई वारदात की गवाही देने से नहीं हिचकिचाता –
वही थोड़ा-सा आदमी –
जो धोखा खाता है पर प्रेम करने से नहीं चूकता,
जो अपनी बेटी के अच्छे फ्राक के लिए
दूसरे बच्चों को थिगड़े पहनने पर मजबूर नहीं करता,
जो दूध में पानी मिलाने से हिचकता है,
जो अपनी चुपड़ी खाते हुए दूसरे की सूखी के बारे में सोचता है,
वही थोड़ा-सा आदमी –
जो बूढ़ों के पास बैठने से नहीं ऊबता
जो अपने घर को चीज़ों का गोदाम होने से बचाता है,
जो दुख को अर्जी में बदलने की मजबूरी पर दुखी होता है
और दुनिया को नरक बना देने के लिए दूसरों को ही नहीं कोसता.
वही थोड़ा-सा आदमी जिसे ख़बर है कि
वृक्ष अपनी पत्तियों से गाता है अहरह एक हरा गान,
आकाश लिखता है नक्षत्रों की झिलमिल में एक दीप्त वाक्य,
पक्षी आँगन में बिखेर जाते हैं एक अज्ञात व्याकरण
वही थोड़ा-सा आदमी –
अगर बच सका तो वही बचेगा।
==============================================
सादर, साभार प्रस्तुत.
वही बचेगा हम सबमें
थोड़ा-सा आदमी –
जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता,
अपने बच्चे के नम्बर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर,
जो रास्ते पर पड़े घायल को सब काम छोड़कर
सबसे पहले अस्पताल पहुँचाने का जतन करता है,
जो अपने सामने हुई वारदात की गवाही देने से नहीं हिचकिचाता –
वही थोड़ा-सा आदमी –
जो धोखा खाता है पर प्रेम करने से नहीं चूकता,
जो अपनी बेटी के अच्छे फ्राक के लिए
दूसरे बच्चों को थिगड़े पहनने पर मजबूर नहीं करता,
जो दूध में पानी मिलाने से हिचकता है,
जो अपनी चुपड़ी खाते हुए दूसरे की सूखी के बारे में सोचता है,
वही थोड़ा-सा आदमी –
जो बूढ़ों के पास बैठने से नहीं ऊबता
जो अपने घर को चीज़ों का गोदाम होने से बचाता है,
जो दुख को अर्जी में बदलने की मजबूरी पर दुखी होता है
और दुनिया को नरक बना देने के लिए दूसरों को ही नहीं कोसता.
वही थोड़ा-सा आदमी जिसे ख़बर है कि
वृक्ष अपनी पत्तियों से गाता है अहरह एक हरा गान,
आकाश लिखता है नक्षत्रों की झिलमिल में एक दीप्त वाक्य,
पक्षी आँगन में बिखेर जाते हैं एक अज्ञात व्याकरण
वही थोड़ा-सा आदमी –
अगर बच सका तो वही बचेगा।
==============================================
सादर, साभार प्रस्तुत.
9 comments:
बहुत खूब, आज भी हैं समाज में, ऐसे थोड़े से आदमी.
लुप्तप्राय प्रजाति से मिलाने के लिऎ शुक्रिया !
बहुत सही कहा...
बस मानवता बची रहनी चाहिए,मानव बचा रहे या नहीं...
अगर बच सका तोवही बचेगा हम सब में थोड़ा-सा आदमी..........
जो धोखा खाता है पर प्रेम करने से नहीं चूकता
,,,,,,,शानदार
आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों से नहीं आ पाया...क्षमा चाहता हूँ...आपकी लेखनी का हमेशा से प्रशंशक रहा हूँ...बहुत विलक्षण रचना पढने को मिली है आज...मेरी बधाई स्वीकारें...
नीरज
बेहतरीन डाक्टर साहब। बहुत दिनों बाद आया, अच्छा लगा।
मानवता की इससे अच्छी परिभाषा और क्या हो सकती है ।
आप सब का आभार...
======================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत प्यारी रचना लगी यह , हार्दिक शुभकामनायें !!
Post a Comment