Monday, August 22, 2011
जन लोकपाल बिल आखिर है क्या ?
भ्रष्टाचार पर अब तक स्कूल और कालेज की पढ़ाई के दौरान निबंध लिखने या वाद विवाद प्रतियोगिता आदि में अपनी दलीलें पेश करने के मौके ही देखे और सुने जाते रहे हैं. लेकिन, इस दौर की नई और पुरानी पीढ़ी एकबारगी एक ज़मीनी सच्चाई की गवाह बन रही है कि स्वतंत्र भारत में पहली बार किसी कानून के लिए इतना बड़ा जन समुदाय उठ खड़ा हुआ है। हालात ये है कि अब बहस लोकपाल की स्थापना की मांग की जगह पर केवल यह तय करवाने पर सिमट गई है कि लोकपाल कैसा हो। वह सरकारी विधेयक के रूप में एक और संस्था मात्र हो या फिर जन लोकपाल विधेयक द्वारा प्रस्तावित एक सर्वशक्तिमान और मज़बूत सिस्टम बने. बहरहाल लोकपाल या जन लोकपाल के मसौदे या फ़र्क को जानने व समझने परे आम जनता की दिलचस्पी सिर्फ अन्ना हजारे के आन्दोलन के नए नज़ारे पर आकर केन्द्रित हो गयी है. माज़रा ये है कि बहुतेरे शायद ठीक-ठीक जानते भी नहीं कि आखिर ये लोकपाल किस चिड़िया का नाम है ?
सबसे पहले यह बताना मुनासिब होगा कि जन लोकपाल भष्टाचार निरोधक विधेयक का मसौदा है। यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो भारत में जन लोकपाल चुनने का रास्ता साफ हो जायेगा जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जन लोकपाल को जबरदस्त शक्तियां प्राप्त होंगी. वह उंचे पदों पर बैठे जन प्रतिनिधियों और लोक सेवकों पर अभियोग चलाने में समर्थ होगा. बताया जा रहा है कि जन लोकपाल की पुरजोर मांग पर अड़ी टीम अन्ना ने व्यापक रूप से जनता के विचार साझा करने के बाद इसका प्रारूप तैयार किया है।
अव्वल यह जानें कि इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन किया जाएगा । यह संस्था चुनाव आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा। अपराधी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा। इतना ही नहीं उसकी वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है, अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।
लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा. किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसे जांच के बाद दो महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया जाएगा.सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था दी जायेगी. इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजी गई थी. इसमें यह प्रावधान भी है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
अब सबसे अहम् सवाल ये है कि यह विधेयक आम नागरिक की कैसे मदद करेगा ? तो यह गौर किया जाना चाहिए कि यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा। अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग वगैरह..वगैरह. लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
पूछा जा सकता है कि क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी ? इसका जवाब देते हुए विधेयक तैयार करने वालों ही कहा है ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि राजनेताओं द्वारा. लिहाज़ा इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी। एक और शंका संभव है कि अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? फ़िक्र न करें. विधेयक कहता है कि लोकपाल / लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
लोकपाल और जनलोकपाल
में फर्क क्या है ?
ये प्रश्न आज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. लोगों को समझना चाहिए कि सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. कुछ मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैग्सेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।
आज सबसे अहम और गंभीर चर्चा का जो मुद्दा लोकपाल और जन लोकपाल को जुदा करता है वह यह है कि सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा. सरकारी लोकपाल विधेयक में ब्यूरोक्रेट्स और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत उनके खिलाफ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.
जन लोकपाल को लेकर मौजूदा मुहिम से एक बात साफ हो गयी है कि जनता भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहती है. उसे ऐसी पहल कदमी से काफी उम्मीद है,लेकिन यदि जनता यह सोचती है कि लोकपाल के पद पर बैठ जाने मात्र से ही कोई व्यक्ति सर्वशक्तिमान और फ़रिश्ते की मानिंद हो जाएगा की उससे कभी कोई गलती नहीं होगी तो इन पंक्तियों के लेखक का कहना है कि ऐसा ख्याल खुद गलत भी साबित हो सकता है. इस पर शांत होकर विचार करने की जरूरत है। व्यावहारिक धरातल पर हर संभावना का आकलन करने की आवश्यकता है. जब तक देश का हर आम और ख़ास आदमी पूरी नेक नीयती के साथ तय नहीं करेगा की 'अन्य आय', सचमुच अन्याय है तब तक कोई क़ानून चाहे वह कितना ही धारदार क्यों न हो जनता के सपनों का रखवाला नहीं बन सकता. कहा गया है न कि "हर सहारा बेअमल के वास्ते बेकार है, आँख ही खोले न गर कोई उजाला क्या करे ?"
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राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ ) के लोकप्रिय हिन्दी दैनिक
'सबेरा संकेत' में प्रकाशित लेख साभार .
लेखक - डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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