'अंधविश्वास' पर 'विश्वास' की मुहर आखिर कब तक ?
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता डॉ.नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के एक दिन बाद महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को काला जादू, अंध श्रद्धा और अंध विश्वास को खत्म करने संबंधी लंबे समय से लंबित विधेयक को अध्यादेश के जरिए लागू करने का फैसला किया। देश में यह अपनी तरह का पहला कानून होगा। याद रहे कि हाल ही में अंधविश्वास जैसे मसलों पर तीन दशक से जन जागरूकता अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दाभोलकर की हत्या के बाद उठे जन आक्रोश और चुनौतीपूर्ण समाज कार्य की आजादी के आगे पैदा हुए सवालिया निशान के मद्देनज़र स्वाभाविक आशा थी कि इस दिशा में कोई अहम कदम उठाया जाएगा . बहरहाल क़ानून तो अमल के बाद ही समाजोपयोगी बन पाता है, फिर भी उम्मीद है कि इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में पहुँच चुके हमारे समाज को इस ऐतिहासिक क़ानून की आंच में विश्वास और अंध विश्वास के बीच अंतर समझने में कुछ तो मदद मिलेगी .
गौरतलब है कि विश्वास और अंध विश्वास; श्रद्धा और अंधश्रद्धा में फर्क है.श्रद्धा,खुद पर विश्वास का दूसरा नाम कहा जा सकता है . श्रद्धा हमें विवेकवान बनाती है, संशय का परिहार करती,तर्क बुद्धि को धार देती है,जबकि अंधश्रद्धा विवेक को नष्ट-भ्रष्ट कर देती है, संदेह को बल देती है, तर्क का तिरस्कार करती है. श्रद्धा कब और कहाँ पहुंच कर अंधश्रद्धा का रूप ले लेती है, मालूम नहीं चल पाता। यही कारण है कि जाने-अनजाने में भोले-भाले लोग उसकी चपेट में आकर अंधश्रद्धा को ही धर्म और यहाँ तक जीवन का कर्तव्य मान बैठते हैं।
आज से करीब छह शताब्दी पहले संत कबीरदास ने अंधश्रद्धा के अमानवीय चेहरों पर जमकर प्रहार किया था कि लोग जागीं और सत्य के सही स्वरूप को पहचानें। कबीर संत थे. ईश्वर में गहरी आस्था रखते थे,किन्तु ईश्वर के विधान के नाम पर समाज में व्याप्त अंधविश्वासों की उन्होंने न सिर्फ़ आलोचना की, बल्कि उसके प्रचलित और छुपे हुए रूपों को खुलकर उजागर भी किया।
इन अंधविश्वासों के नाम पर होने वाले आडम्बर पूर्ण कार्यों, सामाजिक भेदभाव,अस्पृश्यता की अमानवीयता के खिलाफ कबीर ने विकट संघर्ष किया. उसमें छिपे शोषण को उजागर किया. याद रहे कि अपने दौर में उन्हें भी काफी विरोधों का सामना करना पड़ा। और दुर्भाग्य है कि आज आश्चर्यकारी सूचना क्रांति और तमाम तरक्की के बावजूद 21वीं सदी में भी यह संघर्ष जारी है। खैर, संघर्ष तक बात होती तो कोई बात नहीं, दुःख तो इस बात का है कि अब प्राणों का ही संकट झेलकर लड़ाई लड़ने की नौबत आ पहुंची है .
अंधविश्वासों के खिलाफ जागृति फैलानेवाले डॉ नरेंद्र दाभोलकर की प्राणाहुति इस संघर्ष के खतरों से मानव समाज को आगाह कर रही है। महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना करनेवाले दाभोलकर का पूरा जीवन लोगों में जागरूकता पैदा करने को समर्पित था. इसके लिए उन्हें अपने सुख-चैन तक की परवाह नहीं थी।
पेशे से डॉक्टर रहे दाभोलकर तंत्र-मंत्र,जादू-टोना व दूसरे अंधविश्वासों को दूर करने के मिशन में जिस तरह से लगे हुए थे। उनकी पहल श्रद्धा के पहरुए बने तथाकथित स्वयंभू लोगों को शायद रास नहीं आई। मामला जो भी हो पर बिलाशक कहा जा सकता है कि दाभोलकर की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, यह लंबे संघर्ष के बाद मानव सभ्यता द्वारा अर्जित किये गये आधुनिक विचारों और खुली सोच का गला घोंटने की कोशिश है। दाभोलकर की जंग न व्यक्तिगत थी, न किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ थी। जानकारों का कहना है कि वे उन तर्क सम्मत विचारों का प्रतिनिधित्व और प्रचार कर रहे थे, जो रूढ़ियों का विरोध करते हैं .वह विचार,जो कबीर के ‘आंखन देखी’ की तरह तर्क को अहमियत देता है और जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पक्षधर है।
आज हम उत्तर आधुनिक होने का दावा कर रहे हैं, वैश्विक हो गए हैं हम सब ! हमारा कद इतना बड़ा हो गया है कि हमें पूरी दुनिया बहुत छोटी दिखाई देती है। पर यह सच्चाई हमारी सोच के साथ साथ हमारी कथनी और करनी के अंतर को रेशा-रेशा कर उद्घाटित करने वाली है कि आज भी समाज में अंधविश्वासों के नाम पर दमन और शोषण का कुचक्र जारी है। हमारे समाज से आने वाली शिशु नरबलि, चुड़ैल कह कर औरतों की हत्या की खबरें, टोनही प्रताड़ना जैसे हालात इस बात के अत्यंत कष्टप्रद प्रमाण हैं। आर्थिक-सामाजिक शोषण के दूसरे रूप तो प्रचलन में हैं ही।
यह सही है कि समाज ने अंधविश्वासों के खिलाफ एक लंबी जंग लड़ी है, लेकिन डॉ . दाभोलकर की हत्या हमें सचेत कर रही है कि यह लड़ाई अभी अधूरी है। अंध विश्वास के विरुद्ध पारदर्शी और अडिग विचारों को पोषण देने लड़ाई अगर थम गई तो कोई आश्चर्य न होगा कि हम आदिम युग के आधुनिक कहलाने का 'गौरव' मात्र हासिल कर जीते रह जायेंगे !
1 comment:
Aapke aalekh ke shailii bandh kar rakhti hai.Acche lekhan ke liye badhai..
Mere blog paar meri kuch kavitaon par apki pratikriya chahunga......
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