अमीर खुसरो की लाज़वाब पहेलियाँ और मुकरियाँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
खडी बोली हिंदी को साहित्य रचना का माध्यम बनाने वाले विश्व विख्यात अमीर खुसरो का मूल नाम अमीर सैफ़ुद्दीन ख़ुसरो था. उनका जन्म 1253 में एटा (उत्तरप्रदेश) में हुआ था. हिंदी, उर्दू, फारसी,ब्रजभाषा में उन्होंने रचनाएँ लिखीं। कविता को अभिव्यक्ति की मूल विधा के रूप में अपनाया। उनका निधन 1325 में हुआ. स्मरणीय है कि तबला हज़ारों साल पुराना वाद्ययंत्र है किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि तेरहवीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा अमीर ख़ुसरो ने पखावज के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया।
आइये, अमीर साहब कि चाँद पहेलियों और मुकरियों का रसास्वादन करें।
रोटी जली क्यों?
घोड़ा अड़ा क्यों?
पान सड़ा क्यों ?
उत्तर : फेरा न था
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पंडित प्यासा क्यों?
गधा उदास क्यों?
उत्तर : लोटा न था
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एक नारी के हैं दो बालक, दोनों एकहि रंग।
एक फिरे एक ठाढ़ा रहे, फिर भी दोनों संग।
उत्तर : चक्की
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चार अंगुल का पेड़, सवा मन काफ्ता।
फल लागे अलग अलग, पक जाए इकट्ठा।।
उत्तर : कुम्हार की चाक
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गोरी सुंदर पातली, केहर काले रंग।
ग्यारह देवर छोड़ कर चली जेठ के संग।।
उत्तर : अरहर की दाल
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ऊपर से एक रंग हो और भीतर चित्तीदार।
सो प्यारी बातें करे फिकर अनोखी नार।।
उत्तर : सुपारी
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एक नार कुएँ में रहे,
वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे,
फिर जीवन की आस न राखे।।
उत्तर : तलवार
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स्याम बरन की है एक नारी,
माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले,
कुत्ते की वह बोली बोले।।
उत्तर : भौं
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एक गुनी ने यह गुन कीना,
हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादूगर का हाल,
डाले हरा निकाले लाल।
उत्तर : पान
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एक थाल मोतियों से भरा,
सबके सर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे,
मोती उससे एक न गिरे।
उत्तर : आसमान
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और ये चुनिंदा कुछ मुकरियाँ -
1.
खा गया पी गया
दे गया बुत्ता
ऐ सखि साजन?
ना सखि कुत्ता!
2.
लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
3.
रात समय वह मेरे आवे
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!
4.
नंगे पाँव फिरन नहिं देत
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा लेत निपूता
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता!
5.
ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चांद!
6.
जब माँगू तब जल भरि लावे
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा!
7.
वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!
8.
बेर-बेर सोवतहिं जगावे
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी!
9.
अति सुरंग है रंग रंगीले
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन? ना सखि तोता!
10.
आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा!
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