बार कितनी प्रियजनों का साथ छूटा है
कल्पना का कलश कितनी बार फूटा है
हाथ में आई सुधा भी छीन ली जग ने
पर अटल विश्वास का धागा न टूटा है
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तिमिर घिरा है सघन व्यथा का पार नहीं है
किंतु शिथिल हो मेरे मन ने मानी हार नहीं है
प्रीत प्रगति के साथ अचंचल मेरी सदा रही है
तुम कितना भी रोको मेरा थमता प्यार नहीं है
कल्पना का कलश कितनी बार फूटा है
हाथ में आई सुधा भी छीन ली जग ने
पर अटल विश्वास का धागा न टूटा है
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तिमिर घिरा है सघन व्यथा का पार नहीं है
किंतु शिथिल हो मेरे मन ने मानी हार नहीं है
प्रीत प्रगति के साथ अचंचल मेरी सदा रही है
तुम कितना भी रोको मेरा थमता प्यार नहीं है
2 comments:
तिमिर घिरा है सघन व्यथा का पार नहीं है
किंतु शिथिल हो मेरे मन ने मानी हार नहीं है
प्रीत प्रगति के साथ अचंचल मेरी सदा रही है
तुम कितना भी रोको मेरा थमता प्यार नहीं है
wah badi sundar baat kahi.
हाथ में आई सुधा भी छीन ली जग ने
पर अटल विश्वास का धागा न टूटा है
क्या बात हे चन्दर जी ,आज तो हिम्मत दिला दी आप ने ,धन्यवाद
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