सुदामा पाण्डेय धूमिल की कविता की दुनिया
समकालीन साहित्य-बोध का जीवंत दस्तावेज़ है
वक्त के साथ-साथ जब कविता
इंसान की ज़बान बनकर अधिक वेग से उभरेगी,
मेरा यकीन है कि तब लोग समझ पाएँगे कि
धूमिल अपने समय का ही नहीं,
हिन्दी का सबसे अलग और संधर्षशील कवि है.
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धूमिल के प्रकाशित काव्य-संग्रह हैं -
संसद से सड़क तक (१९७२)
कल सुनना मुझे (१९७७),
धूमिल की कविताएँ (१९८३)
सुदामा पाण्डेय का प्रजातंत्र (१९८३)
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लीजिए पेश हैं धूमिल की चंद पंक्तियाँ जो
कवि के तेज की स्वयं गवाह हैं-
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एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है
और न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ ये तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद मौन है !
समकालीन साहित्य-बोध का जीवंत दस्तावेज़ है
वक्त के साथ-साथ जब कविता
इंसान की ज़बान बनकर अधिक वेग से उभरेगी,
मेरा यकीन है कि तब लोग समझ पाएँगे कि
धूमिल अपने समय का ही नहीं,
हिन्दी का सबसे अलग और संधर्षशील कवि है.
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धूमिल के प्रकाशित काव्य-संग्रह हैं -
संसद से सड़क तक (१९७२)
कल सुनना मुझे (१९७७),
धूमिल की कविताएँ (१९८३)
सुदामा पाण्डेय का प्रजातंत्र (१९८३)
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लीजिए पेश हैं धूमिल की चंद पंक्तियाँ जो
कवि के तेज की स्वयं गवाह हैं-
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एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है
और न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ ये तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद मौन है !
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