Sunday, April 6, 2008

हो जाते हैं क्यों लोग पराए !

आँसू किसी गरीब के पलकों से उठाए
वो शख्स मेरे साथ चले शौक से आए

जिसने किसी के वास्ते मांगी नहीं दुआ
मुमकिन नहीं वो मेरा कभी साथ निभाए

होंठों पे जिनके गीत थे अब खो गए कहाँ
लय उनकी ज़िंदगी की कोई फिर से मिलाए

जलना है तो यूं जल की उजाला हो प्यार का
जलता हुआ दीपक ये सबक सब को सिखाए

कितने हैं ऐसे लोग जिन्हें ये नहीं मालूम
मुँह फेर के हो जाते हैं क्यों लोग पराए

जो फूल थे काँटों का असर उनमें आ गया
क्या हो गया इन्सां को कोई ये तो बताए

जो कारवां के साथ शरीके सफर न थे
मंजिल पे जो पहुँचा तो वही सामने आए

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

आँसू किसी गरीब के पलकों से उठाए
वो शख्स मेरे साथ चले शौक से आए
वाह कया बात हे अगर हम सब की ऎसी सोच बन जाये तो भारत फ़िर से ना सोने की चिडिया बन जाये, दिल से आप का धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा.

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब
जिसने किसी के वास्ते मांगी नहीं दुआ
मुमकिन नहीं वो मेरा कभी साथ निभाए
जो कारवां के साथ शरीके सफर न थे
मंजिल पे जो पहुँचा तो वही सामने आए
वाह वा ....लाजवाब शेर कहें हैं आपने.
नीरज