शायरे फितरत हूँ मैं,जब फिक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बन के ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी
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बुलंद इक़बाल वो है जिससे तुमको प्यार हो जाए
सिपाही पर नज़र डालो तो थानेदार हो जाए
- नामालूम
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आरजू ले के कोई घर से निकलते क्यों हैं ?
पाँव जलते हैं तो फिर आग पर चलते क्यों हैं ?
- वाली आरसी
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बेवज़ह मन पे कोई बोझ न भारी रखिए
ज़िंदगी ज़ंग है इस ज़ंग को ज़ारी रखिए
- डॉ.उर्मिलेश
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छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है,बाँहों भर संसार
- निदा फाज़ली
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खूब गए परदेश कि अपने दीवारों दर भूल गए
शीश महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गए
- नज़ीर
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कल रात एक अनोखी बात हो गई
मैं तो जागता रहा ख़ुद रात सो गई
- अनूप भार्गव
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किसी अमीर की महफ़िल का ज़िक्र क्या है अमीर
खुदा के घर भी न जाऊँगा बिन बुलाए हुए
- अमीर मीनाई
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रूह बन के ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी
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बुलंद इक़बाल वो है जिससे तुमको प्यार हो जाए
सिपाही पर नज़र डालो तो थानेदार हो जाए
- नामालूम
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आरजू ले के कोई घर से निकलते क्यों हैं ?
पाँव जलते हैं तो फिर आग पर चलते क्यों हैं ?
- वाली आरसी
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बेवज़ह मन पे कोई बोझ न भारी रखिए
ज़िंदगी ज़ंग है इस ज़ंग को ज़ारी रखिए
- डॉ.उर्मिलेश
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छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है,बाँहों भर संसार
- निदा फाज़ली
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खूब गए परदेश कि अपने दीवारों दर भूल गए
शीश महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गए
- नज़ीर
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कल रात एक अनोखी बात हो गई
मैं तो जागता रहा ख़ुद रात सो गई
- अनूप भार्गव
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किसी अमीर की महफ़िल का ज़िक्र क्या है अमीर
खुदा के घर भी न जाऊँगा बिन बुलाए हुए
- अमीर मीनाई
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4 comments:
wah bahut khuub!sabhi sher achchey hain--lekin---sabhi mein sab se achcha yah laga....
आरजू ले के कोई घर से निकलते क्यों हैं ?
पाँव जलते हैं तो फिर आग पर चलते क्यों हैं ?
उम्दा कलेक्शन लाये हैं, आभार इन्हें एक जगह लाने का.
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है,बाँहों भर संसार
मनभावन धन्यवाद
अंतर्मन से आभार
चंद्रकुमार
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