Sunday, May 25, 2008

बकौल शायर...


शायरे फितरत हूँ मैं,जब फिक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बन के ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी
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बुलंद इक़बाल वो है जिससे तुमको प्यार हो जाए
सिपाही पर नज़र डालो तो थानेदार हो जाए
- नामालूम
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आरजू ले के कोई घर से निकलते क्यों हैं ?
पाँव जलते हैं तो फिर आग पर चलते क्यों हैं ?
- वाली आरसी
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बेवज़ह मन पे कोई बोझ न भारी रखिए
ज़िंदगी ज़ंग है इस ज़ंग को ज़ारी रखिए
- डॉ.उर्मिलेश
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छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है,बाँहों भर संसार
- निदा फाज़ली
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खूब गए परदेश कि अपने दीवारों दर भूल गए
शीश महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गए
- नज़ीर
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कल रात एक अनोखी बात हो गई
मैं तो जागता रहा ख़ुद रात सो गई
- अनूप भार्गव
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किसी अमीर की महफ़िल का ज़िक्र क्या है अमीर
खुदा के घर भी न जाऊँगा बिन बुलाए हुए
- अमीर मीनाई
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4 comments:

Alpana Verma said...

wah bahut khuub!sabhi sher achchey hain--lekin---sabhi mein sab se achcha yah laga....
आरजू ले के कोई घर से निकलते क्यों हैं ?
पाँव जलते हैं तो फिर आग पर चलते क्यों हैं ?

Udan Tashtari said...

उम्दा कलेक्शन लाये हैं, आभार इन्हें एक जगह लाने का.

समयचक्र said...

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है,बाँहों भर संसार
मनभावन धन्यवाद

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अंतर्मन से आभार
चंद्रकुमार