जब तक मेरी आँखें हैं सजल लिख रहा हूँ मैं
खुश हूँ कि ज़िन्दगी की ग़ज़ल लिख रहा हूँ मैं
गुदडी में भी लाल होते हैं मालूम है मुझको
कुटिया में भी खिलते हैं कमल लिख रहा हूँ मैं
जो खेत थे सर-सब्ज़ वो सब बाँध में डूबे
सरकारी महकमे का दख़ल लिख रहा हूँ मैं
जो हाथ जोड़ता है इलेक्शन के दौर में
कितना करेगा कल वही छल लिख रहा हूँ मैं
मज़बूर की आँखों में लहू क्यों उतर आया
क्यों आँख हुई मेरी सजल लिख रहा हूँ मैं
मुश्किल है बहुत आग के दरिया से गुज़रना
ये प्यार नहीं इतना सरल लिख रहा हूँ मैं
मेरा सवाल है कि मैं बिल्कुल गलत नहीं
एक गुलबदन को ताजमहल लिख रहा हूँ मैं
खुश हूँ कि ज़िन्दगी की ग़ज़ल लिख रहा हूँ मैं
गुदडी में भी लाल होते हैं मालूम है मुझको
कुटिया में भी खिलते हैं कमल लिख रहा हूँ मैं
जो खेत थे सर-सब्ज़ वो सब बाँध में डूबे
सरकारी महकमे का दख़ल लिख रहा हूँ मैं
जो हाथ जोड़ता है इलेक्शन के दौर में
कितना करेगा कल वही छल लिख रहा हूँ मैं
मज़बूर की आँखों में लहू क्यों उतर आया
क्यों आँख हुई मेरी सजल लिख रहा हूँ मैं
मुश्किल है बहुत आग के दरिया से गुज़रना
ये प्यार नहीं इतना सरल लिख रहा हूँ मैं
मेरा सवाल है कि मैं बिल्कुल गलत नहीं
एक गुलबदन को ताजमहल लिख रहा हूँ मैं
9 comments:
वाह वाह
सुंदर! अति सुंदर!
आपकी कलम के मुरीद हो गए सब अब तो
पूरे होश मे ये सबका ख्याल लिख रहा हूँ मैं.
बहुत सुन्दर गज़ल-
मज़बूर की आँखों में लहू क्यों उतर आया
क्यों आँख हुई मेरी सजल लिख रहा हूँ मैं
मुश्किल है बहुत आग के दरिया से गुज़रना
ये प्यार नहीं इतना सरल लिख रहा हूँ मैं
वाह
बहुत सुंदर जैन जी। आपने जान निकाल ली।
है आंख मेरी सजल इसीलिए लिख रहा हूं मैं।
.... मेरे पास शब्द नहीं हैं. I find myself incompetent. No comments.
जब तक मेरी आँखें हैं सजल लिख रहा हूँ मैं
खुश हूँ कि ज़िन्दगी की ग़ज़ल लिख रहा हूँ मैं
हमें भी खुशी है कि आप जिंदगी की ग़ज़ल लिख रहे हैं। जिंदगी के इसी राग से तो जीवन(साथ में ब्लोग-जगत भी)बचा हुआ है।
वाह वाह.
बहुत उम्दा हर शेर है जनाब, बधाई.
कई बार पढ़ चुकी हूँ...और फिर लौट कर पढ़ने का मन है...
शब्द टू मुझे भी नही सूझ रहे कि
आप सब का शुक्रिया
कैसे अदा करूं ?
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यही कि अच्छे को अच्छा कहकर
हम कितना कुछ अच्छा कर जाते हैं !
स्नेह का ये सिलसिला जारी रखिए
आपका
चंद्रकुमार
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