हम मीर से कहते हैं तू न रोया कर
हँस-खेल के टुक चैन से भी सोया कर
- मीर तकी 'मीर'
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जब आए थे तो रोते हुए आए थे
अब जायेंगे, औरों को रुला जायेंगे
- अब्राहिम ज़ौक
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दुःख जी को पसंद आ गया है ग़ालिब
दिल रूककर बंद हो गया है ग़ालिब
- मिर्ज़ा ग़ालिब
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रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह
- मोमिन खां 'मोमिन'
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परवरदिगार ही तो है, गुल दे कि खार दे
जी चाहे जिस तरह वो चमन को बहार दे
- हीरालाल 'फ़लक'
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आदमी हूँ गुनाह करता हूँ
इसमें ऐ रब मेरी खता क्या है
- कृष्णकुमार 'चमन'
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पंछी उड़े तो सूखे हुए पेड़ ने कहा
रुत फिर गयी तो ये भी मुझे छोड़कर चले
- नौबहार 'साबिर'
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8 comments:
दुःख जी को पसंद आ गया है ग़ालिब
दिल रूककर बंद हो गया है ग़ालिब
bahut umda...padvaya.....
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह
बहुत बढ़िया शेर, शुक्रिया।
क्या मोती सहेज कर लाते है आप.
आते ही दिलो-दिमाग पर छा जाते है आप.
बहुत ही बेहतरीन गुलदस्ता भेंट किया आपने.
बहुत-बहुत आभार.
जैन साहेब
ऐसे अनमोल मोती हम सब में बांटने का शुक्रिया....एक एक शेर ला जवाब है.
नीरज
har sher apne aap mein khubsurat wah
पहले ही शेर से मीर का एक दूसरा शेर याद आ गया।
"सिरहाने मीर के आहिस्ता बोलो,
अभी टुक रोते-रोते सोया है।"
ये खज़ाना हमारे तईं खोलने के लिये धन्यवाद।
बहुत चुनिंदा शेर खोज खोज कर लाते हैं. बधाई. लाते रहिये.
शुक्रिया....शुक्रिया....शुक्रिया.
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आप सब के स्नेह-सदभाव का ऋणी हूँ.
आपका
चंद्रकुमार
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