Friday, July 4, 2008

कविता से कविता की मुलाक़ात !


व्यर्थ अर्थ की अंध गलियों को छोड़ने
और सार्थकता की राह पर
चलने के बाद जो लिखी जायेगी
वही होगी कविता जागे हुए मनुष्य की.
करेगी वह संघर्ष
हर दिन सीमित होते सुखों के विरुद्ध
टूटेगी नहीं वह
जीवित रखेगी अपनी आँखों में
सुख और सौन्दर्य के सारे सपने
मांजेगी अपने दुखों से अपना तन
निखारेगी अपनी वेदनाओं से अपना मन
मुक्त होगी, मुक्त रखेगी सब को
करेगी अपनी ही दुनिया से
मुलाक़ात वह कविता.
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4 comments:

रंजू भाटिया said...

मुक्त होगी
मुक्त रखेगी सब को
करेगी अपनी ही दुनिया से
मुलाक़ात वह कविता.

सही कहा बहुत सुंदर

इन्दौरनामा said...

सब से मिल लेते हैं डाक साहब ...
अपने से ही नहीं हो पाती मुलाक़ात.
कविता मिलवा सकती है.
संजय

नीरज गोस्वामी said...

आमीन जैन साहेब... वो कविता जल्द ही लिखी जाए...घोर निराशा के इस युग में आशा की कविता की बात करने वाले कवि को मेरा प्रणाम.
नीरज

डॉ .अनुराग said...

अपने दुखों से अपना तन
निखारेगी
अपनी वेदनाओं से अपना मन
मुक्त होगी
मुक्त रखेगी सब को
करेगी अपनी ही दुनिया से
मुलाक़ात वह कविता.

bahut sundar......