एक स्वप्न के बुनने से ज्यादा ज़रूरी है
अपने ही स्वप्न की आहट को
बार-बार, लगातार सुनना
और स्वप्न की आहट को
सुनने से ज़्यादा ज़रूरी है
सुने हुए स्वप्न को साधार बुनना
यानी
बुने हुए सपने को सुनना
और सुने हुए को बुनना हो
तो समझो हुआ
अपने ही स्वप्न को अपने लिए चुनना
और...
चुने हुए सपने को जिया भी जा सके
तो फिर क्या कहना !
स्वप्न को भी जीवन मिल जाएगा
हर बार वह सपना ज़िंदगी दे जाएगा
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Monday, July 7, 2008
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6 comments:
चुने हुए सपने को जिया भी जा सके
तो फिर क्या कहना !
सच कहा जैन साहेब...एक दम सच...लेकिन चुने हुए सपने को जीना कहाँ आसान होता है...विरले ही हैं जो चुने हुए सपने को जी पाते हैं.
शब्दों की जादूगरी दिखाती अनमोल रचना.
नीरज
और स्वप्न की आहट को
सुनने से ज़्यादा ज़रूरी है
बहुत सुंदर
bahut sundar swapna ki aahat jo samjhana jaruri hai,wah
sach me aapke svapno hi.aapki pahchan hai.
स्वप्न को भी जीवन मिल जाएगा
हर बार वह सपना ज़िंदगी दे जाएगा
-बहुत खूब!!
नीरज जी
रंजू जी
डा.अनुराग जी
महक जी
समीर साहब
आप सब का ह्रदय की
गहराइयों से आभार.
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चन्द्रकुमार
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