जितनी गहरी वेदना, उतने गहरे गीत
मेघ तभी हैं बरसते, जब हो गहरी प्रीत
=================उठे कहाँ से देखिए, बरसे कहाँ वो मेघ
गरज-गरज कर कह गए, देख हमारा वेग
=================कजरारे चाहे दिखें, मन के हैं पर साफ़
प्यासी आँखें देखकर, करते हैं इन्साफ़
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बादल-बादल गीत पर, बदली-बदली चाल
गोरी पनघट जा रही, देखो मचा बवाल
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झूम-झूम कर बो रहा, वह धरती में धान
बरस-बरस बादल कहे, जय हो धन्य किसान
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बदला मौसम बदल गया, बादल का बर्ताव
मन आया तब बरसना, बन गया देख स्वभाव
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8 comments:
बढ़िया ! बादलों व वर्षा पर जितना भी लिखा जाए कम है।
घुघूती बासूती
Behtareen dohe!
सब कुछ समयाचीन..
साथ ही बेहतरीन !
बहुत सुन्दर रचना वाह!
bahut sundar ....har jagah badal....
जैन साहेब बाहर बादल तन और ब्लॉग पर आप मन भिगो रहे हैं...बेहद खूबसूरत दोहे सुना कर...वाह.
नीरज
आप सब का अतल
गहराइयों से आभार.
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चन्द्रकुमार
वाह ! बड़े मीठे दोहे हैं
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