वह सावन ही क्या
बहती जिसमें रस धार नहीं
वह पावन ही क्या
जिसके मन में जग-प्यार नहीं
समझी ही नहीं पीड़ा
जिसने व्याकुल मन की
वह जीवन ही क्या
जिसका कोई आधार नहीं
=================
बहुत बढिया!!
वह जीवन ही क्या जिसका कोई आधार नहीं=================बहुत सही
जैन साहेब हमेशा की तरह सच्ची बात को बहुत खूबसूरती से कहने का आपका ये फन लाजवाब रहा... नीरज
बहुत अच्छी बात। आधार बिना जीवन ही क्या ?
बहुत उम्दा... बेहतरीन.जवाब नहीं आपका.
सही है भाई. इतनी छोटी-सी, कितनी बड़ी बात. ये आप का ही अंदाज़ है.
समझी ही नहीं पीड़ाजिसने व्याकुल मन कीवह जीवन ही क्या जिसका कोई आधार नहींसरल भाषा में आप बहुत कुछ कह गए। बधाई स्वीकारें।
अंतस्तल से आभार.===============डा.चन्द्रकुमार जैन
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8 comments:
बहुत बढिया!!
वह जीवन ही क्या जिसका कोई आधार नहीं=================बहुत सही
जैन साहेब
हमेशा की तरह सच्ची बात को बहुत खूबसूरती से कहने का आपका ये फन लाजवाब रहा...
नीरज
बहुत अच्छी बात।
आधार बिना जीवन ही क्या ?
बहुत उम्दा... बेहतरीन.
जवाब नहीं आपका.
सही है भाई. इतनी छोटी-सी, कितनी बड़ी बात. ये आप का ही अंदाज़ है.
समझी ही नहीं पीड़ा
जिसने व्याकुल मन की
वह जीवन ही क्या
जिसका कोई आधार नहीं
सरल भाषा में आप बहुत कुछ कह गए। बधाई स्वीकारें।
अंतस्तल से आभार.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
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