Monday, August 4, 2008

सावन की झड़ी है...!

द्वार सुख के बंद कर

दीवार जो करते खड़ी हैं

कैसे हैं ये लोग जिनको

सिर्फ़ अपनी ही पड़ी है

'आज' का सह ताप 'कल'

शीतल हुआ करता है जग में

क्या वो जाने क्यों लगी

सब ओर सावन की झड़ी है
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10 comments:

Shiv said...

बहुत सुंदर.

रंजू भाटिया said...

सावन की झडी तो है .. सुंदर कविता

vipinkizindagi said...

सावन की झडी ............

bahut achchi...

डॉ. अजीत कुमार said...

कैसे हैं वो लोग.. जिन्हें सिर्फ़ अपनी ही पडी है.
क्या खूब लिखा है आपने.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

शायदा said...

nery nice. photo too good.

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर कविता। ये लोग हम ही हैं।
घुघूती बासूती

बालकिशन said...

बहुत उम्दा....
बेहतरीन.....
आभार.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया आप सब का
तहे दिल से.
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डा.चन्द्रकुमार जैन