Sunday, August 10, 2008

भरी बरसात में...!

भरी बरसात में जो कट गए
वो पेड़ रोते हैं
तरक्की के बहाने यूँ
ज़हर क्यों लोग बोते हैं
जो अपनी साँस का सौदा
चमन बर्बाद कर करते
ये तय मानो कि एक दिन
वो ख़ुशी से हाथ धोते हैं
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16 comments:

Anil Pusadkar said...

barsaat aur paryawaran par achhi rachana.pehli baar aapko padha,laga hamesh padhana padega.badhai aapko ek bar phir

Satish Saxena said...

इस विषय पर बहुत काम बाकी है ! धन्यवाद !बहुत अच्छा लिखा है आपने

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अनिल भी
और सतीश जी
आभार आपका.
दरअसल एक ख़याल आया कि
विविध विषयों पर छोटी-छोटी
कवितायें लिखूँ. लोग व्यस्त भी तो हैं न ?
बहरहाल वही जारी है.
वैसे पूरा ब्लॉग विविध रंगों का मेल रहे
इसका बराबर ध्यान रखा है.
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आपकी यहाँ दस्तक मायने रखती है.
धन्यवाद
डा.चन्द्रकुमार जैन

नीरज गोस्वामी said...

तरक्की के बहाने यूँ
ज़हर क्यों लोग बोते हैं
वाह...जैन साहेब...क्या बात है...पर्यावरण को बिगाड़ने में हम लोगों की भूमिका कितनी बड़ी है सर्व विदित है...आप के दुःख में अपना सुर भी मिला रहा हूँ ये कह कर की:
"इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसां तो नाली हो गयी"
नीरज

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही लिखा।आज इस पर ध्यान देने की बहुत जरूरत है।
रचना बहुत सुन्दर है।

डॉ .अनुराग said...

sahi kaha gurudev....

शोभा said...

जो अपनी साँस का सौदा
चमन बर्बाद कर करते
ये तय मानो कि एक दिन
वो ख़ुशी से हाथ धोते हैं
बहुत सुन्दर कविता।

Udan Tashtari said...

बहुत सही ..सुन्दर कविता.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी
परमजीत जी
डा.अनुराग साहब
शोभा जी
आप सब की दस्तक और
सरोकार का मन से आभार
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डा.चन्द्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया समीर साहब
आपका इंतजार रहता है.
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डा.चन्द्रकुमार जैन

Shiv said...

बहुत सुंदर रचना...पेड़ों की अहमियत एक बार फिर से समझने की ज़रूरत है. नहीं तो ये नाराज पेड़ कुछ भी कर सकते हैं.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हार्दिक धन्यवाद मिश्र जी
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चन्द्रकुमार

Manish Kumar said...

sundar lagi aapki ye kshanika.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया भाई मनीष जी
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

बालकिशन said...

सुंदर और प्रभावी प्रस्तुति.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

धन्यवाद भी बालकिशन जी
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चन्द्रकुमार