अच्छा है मिल जाए गगन पर
मत धरती को भूलो प्यारे
भली बड़ी है ऊँचाई पर
मत घमंड में झूलो प्यारे
ऊँचाई से गहराई का
रिश्ता याद सदा तुम रखना
वक़्त स्वयं भुगतान करेगा
मत बेवक़्त वसूलो प्यारे
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Tuesday, August 26, 2008
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5 comments:
bahut badhiya prerak rachana .
अद्भुत प्रेरक रचना!!
आभार.
जैन साहेब...आप तो बस आप ही हैं...छोटे छोटे शब्दों के जरिये ऐसी ऐसी बातें कर जाते हैं की दांतों तले उंगलियाँ दबानी पड़ जाती हैं....क्या विलक्षण प्रतिभा के धनि हैं आप...भाई वाह...
नीरज
"aankh mein ho swarg lekin paanv dharati par tike hon" ke andaaj mein bahut khoob !
आभार आप सब का.
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चन्द्रकुमार
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