Thursday, August 28, 2008

रिश्ता दिल का...दिल से !

ख़ुशी जो मिल गई

तो ग़म का साथ छूट जाता है

अगर ग़म छा गया

खुशियों पे कहर टूट जाता है

दिलों को जोड़ने वाली

अनोखी डोर है मित्रों !

अगर वह न जुड़ी

तो दिल का रिश्ता रूठ जाता है

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5 comments:

Abhishek Ojha said...

आपकी एक-एक रचना मोती है डॉक्टर साब !

रंजू भाटिया said...

सही कहा ..अच्छी लगी आपकी यह बात

नीरज गोस्वामी said...

सत्य वचन जैन साहेब...हर बार की तरह शाश्वत रचना...
नीरज

Udan Tashtari said...

बेहतरीन...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आभार आप सब का.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन