धरती में नई अब कोई धरती न बनाना
पतझड़ में भी खुशियों के सदा फूल खिलाना
औलाद की खातिर जो सितम सहती रही है
ममतामयी उस माँ की सदा लाज बचाना
माना की तरक्की का ज़माना है ये लेकिन
आतंक का निर्दोष बने अब न निशाना
धरती में नेह है तो है तू भी तो सलामत
तू अपने लहू से इसे गुलज़ार बनाना
बेशक तू ख़्वाब देख यहाँ आसमान के
पर याद रहे तेरा ज़मीं पर है ठिकाना
है सारा विश्व एक ये परिवार हमारा
इसकी ख़ुशी के वास्ते जी-जान लुटाना
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Sunday, September 14, 2008
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8 comments:
achha khayal hai docsaab lekin unko samajh me aaye tab to.
आमीन..
रंजन
aadityaranjan.blogspot.com
'याद रहे तेरा ज़मीं पर…'
बहुत ख़ूब।
बहुत सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ........
काश सब लोग ऐसा सोचने और करने लगें !
औलाद की खातिर जो सितम सहती रही है
ममतामयी उस माँ की सदा लाज बचाना
--बहुत सही!!
काश सभी ऎसा सोचे
धन्यवाद
आभार अंतर्मन से
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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