कभी न हो आतंक कहीं,
हो मानवता का राज !
प्रातः से रवि टेर रहा है
ललित प्रभा का बीज उगाओ
धरती के कोने-कोने में
मानवता का अलख जगाओ
न्याय,दया,करुणा के घर में,
सफल बनें सब काज !
आमंत्रित कर हर कण को अब
महाशक्ति के प्राण जगाओ
फूलों से कोमलता लेकर
नव जीवन के गीत सुनाओ
कभी आस्था के आँगन में,
गिरे न कोई गाज़ !
व्यर्थ विवादों में न उलझें
सदा बड़ा हो देश
जाति,धर्म,भाषा के ऊपर
संस्कृतिमय परिवेश
इसे संभालें,गले लगा लें,
और करें हम नाज़ !
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Tuesday, September 16, 2008
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6 comments:
सदा बड़ा हो देश
जाति,धर्म,भाषा के ऊपर
संस्कृतिमय परिवेश
इसे संभालें,गले लगा लें और करें हम नाज़ !
"great thoughts, wonderful"
Regard
काश ऐसा हो पाता। बहुत अच्छी कविता
आमीन
कभी न हो आतंक कहीं,
हो मानवता का राज !
काश ऐसा वास्तविक जीवन में हो पाता !
इंतजार है !
सुंदर कल्पना... काश सच भी हो जाय..
धन्यवाद आप सब का
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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