Friday, November 7, 2008

दर्द सहो और हँसो....!

जीवन के गीत लिखो
कितनी भी पीड़ा हो
तुम हँसते मीत दिखो।

संकल्पी आंखों में सूरज के सपने हों
अँधियारी रातों में एक दिया बार दो
पलकों पर जो ठहरे आँसू उनको भी तुम
मोती-सी कीमत दो और ज़रा प्यार दो
और नई रीत लिखो
...जीवन के गीत लिखो।

जीवन की गागर से छलक-छलक जाए
उस पानी की कीमत आँकना बेमानी है
और जो समा जाए गागर में सागर-सा
मीत वही पानी तो जीवन का पानी है
और नई प्रीत लिखो
...जीवन के गीत लिखो।

मुक्त गगन में उड़कर धरती पर जो आया
पंछी से पूछो तो घोंसला ही क्यों भाया !
छेद हृदय में गहरे कितने भी हों लेकिन
बाँसुरी से पूछो तो मन उसका क्यों गाया ?
दर्द सहो और हँसो
...जीवन के गीत लिखो।
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12 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छा।

रंजू भाटिया said...

पंछी से पूछो तो घोंसला ही क्यों भाया !
छेद हृदय में गहरे कितने भी हों लेकिन
बाँसुरी से पूछो तो मन उसका क्यों गाया ?
दर्द सहो और हँसो
...जीवन के गीत लिखो।

बहुत सुंदर बात लिखी है आपने

समीर यादव said...

जीवन की गागर से छलक-छलक जाए
उस पानी की कीमत आँकना बेमानी है
और जो समा जाए गागर में सागर-सा
मीत वही पानी तो जीवन का पानी है
और नई प्रीत लिखो
...जीवन के गीत लिखो।

सुंदर पंक्तियाँ.....अनवरत रहे.

अमिताभ मीत said...

वाह ! क्या बात है डॉ साहब. क्या क्या कह गए ...

makrand said...

पर जो आया
पंछी से पूछो तो घोंसला ही क्यों भाया !
छेद हृदय में गहरे कितने भी हों लेकिन
बाँसुरी से पूछो तो मन उसका क्यों गाया ?
दर्द सहो और हँसो
...जीवन के गीत लिखो।
bahut khub

डॉ .अनुराग said...

aashavadi geet aapki pahchan ban gaye hai.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

पर जो आया
पंछी से पूछो तो घोंसला ही क्यों भाया !
छेद हृदय में गहरे कितने भी हों लेकिन
बाँसुरी से पूछो तो मन उसका क्यों गाया ?


--बहुत उम्दा, वाह!!

mehek said...

bahut sundar

रंजना said...

जीवन के गीत लिखो
कितनी भी पीड़ा हो
तुम हँसते मीत दिखो।
.........

in panktiyon me sukhi jeevan ke sootra batla diye aapne....bahut bahut sundar....Waah !

अजित वडनेरकर said...

जीवन के गीत लिखो
कितनी भी पीड़ा हो
तुम हँसते मीत दिखो।

जीवन की आभा और संघर्ष के सकारात्मक
अदेखे अंत की और संकेत करता यह प्रेरणादायी गीत आज की उपलब्धि है।
इस गीत की टेक भी जबर्दस्त है-
तुम हंसते मीत दिखो....
और नई रीत लिखो....
और नई प्रीत लिखो....
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वाह, डॉक्टसा, खूब लिखो, खूब लिखो.....

नीरज गोस्वामी said...

छेद ह्रदय में गहरे कितने भी हों लेकिन....वाह अद्भुत रचना जैन साहेब...जीवन का निचोड़ प्रस्तुत करती हुई...नमन आप की कलम को....बार बार नमन...
नीरज