Sunday, January 18, 2009

देने वाले 'आम' रह गए...!


किरणों के माली जाने क्यों

अँधियारों के दास बन गए !

हँसी बाँटते थे जो कल तक

देखो आज उदास बन गए !

जीवन का निर्वाह हो गया

इतना जीवन पर हावी है,

देने वाले 'आम' रह गए

लेने वाले 'ख़ास' बन गए !

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8 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

जीवन का निर्वाह हो गया

इतना जीवन पर हावी है,

देने वाले 'आम' रह गए

लेने वाले 'ख़ास' बन गए !

बहुत sunder बात कह दी आपने

Anil Pusadkar said...

वाह डाक्साब वाह्।

निर्मला कपिला said...

हंसी बांटते थे जो कल तक आज वो उदास हो गये
क्या सुन्देर अभिव्यक्ति है

रंजू भाटिया said...

हँसी बाँटते थे जो कल .. आज उदास बन गए ! बहुत खूब कहा आपने

नीरज गोस्वामी said...

देने वाले 'आम' रह गए
लेने वाले 'ख़ास' बन गए
आम और खास को किस खूबसूरती से परिभाषित किया है आपने...जितनी प्रशंशा करूँ कम है...वाह..
नीरज

नीरज गोस्वामी said...

देने वाले 'आम' रह गए
लेने वाले 'ख़ास' बन गए
आम और खास को किस खूबसूरती से परिभाषित किया है आपने...जितनी प्रशंशा करूँ कम है...वाह..
नीरज

Dr. Amar Jyoti said...

जीवन की विडम्बना का मुखर चित्र।
बधाई।

दिनेशराय द्विवेदी said...

ऐसा ही नियम है प्रकृति का। यह शाश्वत अंतर्विरोध है जिस का हल करने में मनुष्य जुटा है। कब हल होता है यह आने वाला वक्त बताएगा।