लगन सूरज की पैदा हो गई
लो तमस भी भागा
अगन धीरज की पैदा हो गई
संकल्प भी जागा
बुझे मन से कभी ये ज़िंदगी
रौशन नहीं होती
तपन ज़ज्बे की पैदा हो गई
सोने में सुहागा
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बहुत बढिया रचना है ,चन्द्रकुमार जी। कम शब्दों मे गहरी बात।बधाई।
Waah !!!
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2 comments:
बहुत बढिया रचना है ,चन्द्रकुमार जी। कम शब्दों मे गहरी बात।बधाई।
Waah !!!
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