Sunday, March 29, 2009

एक बूँद...!


यदाकदा
रंगों की एक बूँद से ही
बन जाती है
महान कलाकृति
स्याही की एक बूँद से ही
बन जाती है सुंदर कविता
आँसू की एक बूँद से ही
गूँजने लगती है किलकारी
तेल की एक बूँद से ही
बढ़ जाती है
बुझते दिए की रौशनी
ओस की एक बूँद से ही
सतरंगी इन्द्रधनुष है चमकता
लाल स्याही की एक बूँद से ही
बन जाता परीक्षार्थी का भविष्य !
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कृष्णकुमार अजनबी की कविता
देशबंधु,रायपुर से साभार।

5 comments:

"अर्श" said...

JAIN SAHIB NAMASKAAR,
BAHOT HI KHUBSURAT KAVITA KAHI HAI AAPNE ... BHAVABHIBYAKTI AUR PRASTUTI DONO HI KMAAL KE HAI..

BADHAAEE

ARSH

शोभा said...

सुन्दर लिखा है।

mehek said...

boondh mein astitva hai,sunder bahutsunder badhai

रंजना said...

वाह !!! क्या बात कही!!!

बहुत ही सुन्दर बात कितने सुन्दर ढंग से कही आपने..

नीरज गोस्वामी said...

आँसू की एक बूँद से ही
गूँजने लगती है किलकारी
अब इस विलक्षण रचना पर क्या कहा जाए...नमन ही किया जा सकता है...
नीरज